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आज मनोविज्ञान में दो प्रकार के भावों की चर्चा बहुत होती है-निषेधात्मक भाव और विधेयात्मक भाव। ये सारे निषेधात्मक भाव क्या हैं ? बुरे भाव, मूर्छा के भाव निषेधात्मक भाव हैं। हमारे उज्ज्वल और विशुद्धभाव विधेयात्मक भाव हैं। जब तक ये निषेधात्मक भाव हैं, शक्ति और शान्ति की बात कभी सोची भी नहीं जा सकती। शान्ति की बात तभी सोची जा सकती है, जब निषेधात्मक भाव कम हो और विधेयात्मक भावों की प्रबलता हो। शान्ति का मार्ग प्रेक्षाध्यान का अर्थ है, विधायक भावों का विकास करना और निषेधात्मक भावों को कम अथवा शान्त करना। प्रेक्षाध्यान का प्रयोग करने वाले इस सचाई का गहराई से अनुभव करेंगे। श्वास को देखना, चैतन्य केन्द्रों पर ध्यान करना मात्र एक माध्यम है, मंजिल नहीं। इनके द्वारा हम चेतना के उस स्तर पर पहुंचना चाहते हैं, जहां हमारी भावनाएं काम कर रही हैं। वहां पहुंच कर हम भावनाओं का संतुलन बना सकें, उनका परिष्कार कर सकें। वह हमारी मंजिल है पर उसके पूर्व पथ और गंतव्य दोनों का विवेक करना है। हम रास्ते को मंजिल न मान लें। यह विवेक बिना ध्यान की आराधना के संभव नहीं है। ___ आज के इस भीड़भरे कोलाहलमय वातावरण में जीने वाला आदमी यदि ध्यान का सहारा नहीं लेता है और उसके माध्यम से अपनी भावनाओं का परिष्कार करना नहीं जानता है तो मुझे लगता है इस विकसित युग में अविकसित लोगों को भीड़ और बढ़ जायेगी। संसार में आज जो भयानक स्थिति व्याप्त हो रही है, उससे बचने के लिए ध्यान के द्वारा शान्ति के मार्ग का अनुसरण करें, उसी में व्यक्ति और समाज की भलाई है।
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Foreate a personal use धर्म और शान्ति / ५३
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