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बात से उसकी शान्ति विलीन हो जाती है। मन उद्विग्न हो जाता है। कमजोर और शक्तिहीन आदमी कभी शान्ति का अनुभव नहीं कर सकता।
शक्ति और शान्ति शान्ति की पहली शर्त है शक्ति का विकास। हम शक्तिशाली बनें, अपनी शक्ति का विकास करें। क्रम से चलें-पहले स्तर पर है भावनात्मक शक्ति का विकास। दूसरे पर है मानसिक शक्ति या मनोबल का विकास और तीसरे स्तर पर है शारीरिक शक्ति का विकास । नाड़ीतंत्र भी मजबूत होना चाहिए। ग्रन्थि तंत्र भी मजबूत और स्वस्थ होना चाहिए। शारीरिक शक्ति का मतलब शारीरिक सौष्ठव नहीं है, बहत वजन उठा लेना या कश्ती जीतना नहीं है। शारीरिक शक्ति के विकास का अर्थ है नाड़ीतंत्र, ग्रन्थितंत्र, मस्तिष्क और पृष्ठरज्जु का सुदृढ़ होना। ये तीनों शक्तियां जिसमें विकसित होती हैं, उसे शक्तिशाली कहा जा सकता है। इस सूत्र को सामने रखें-शक्ति के बिना शान्ति नहीं है। भावनात्मक विकास, मनोबल का विकास और शारीरिक विकास-इस समुच्चय का अर्थ है शान्ति।
वह शान्ति कैसे लाएगा ? व्यक्ति को सबसे पहले अपने आप में शान्ति का अनुभव करना है। जब व्यक्ति शान्ति का अनुभव स्वयं में नहीं करता है, तो परिवार में शान्ति की कल्पना नहीं की जा सकती। पारिवारिक शान्ति पहली बात नहीं है। पहली बात व्यक्ति की अपनी शान्ति है। जो व्यक्ति स्वयं अशान्त है, वह परिवार में शान्ति कैसे ला सकेगा ? ___अध्यापक ने विद्यार्थी से गणित का एक सवाल पूछा- 'बताओ, तुम्हारी मां एक घण्टे में जो काम करती है, उसमें तुम्हारे पिता भी सहयोग करें तो उस काम में कितना समय लगेगा ? विद्यार्थी बोला- 'सर, दो घंटे।' अध्यापक ने कहा--'तुम होश में तो हो। एक घण्टे में एक आदमी किसी काम को कर रहा है, उसमें एक और व्यक्ति जुड़ जाए तो काम कम समय में होगा या ज्यादा समय में ? विद्यार्थी ने कहा-'आप शायद मेरे पिता
और मां से परिचित नहीं हैं। जब वे दोनों किसी एक काम में लगेंगे तब डेढ़ घंटा तो आपस में लड़ेंगे, झगड़ेंगे, बाद में काम आधे घण्टे में होगा।'
धर्म और शान्ति / ४७
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