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इसलिए मन बीमार है और मन बीमार है, इसलिए सारा स्वभाव बिगड़ गया है, व्यवहार में अन्तर आ गया है।'
व्यवहार क्यों बदलता है ? स्वभाव क्यों बदलता है ? आदतें क्यों जटिल बनती हैं ? इसका कारण है कि भावना के स्तर पर हमारी चेतना ठीक काम नहीं करती। जब तक उस स्तर पर पहुंच कर हम नहीं सोचेंगे, परिवर्तन कभी संभव नहीं होगा। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए दवाइयां दी जाती हैं। मानसिक स्वस्थता के लिए भी बहुत सारी शामक औषधियां प्रचलन में हैं किन्तु इनसे मूल बात पकड़ में नहीं आती। मन स्वस्थ तभी होगा, जब भावनाएं स्वस्थ होंगी। दवा और औषधि से इनका उपचार नहीं होगा। जब दवा में हम इनका समाधान ढूंढ़ने लगते हैं, तब समस्या उलझती चली जाती है। जो एक बार उलझ गया, वह फिर इसमें से निकल नहीं पाता।
ऊर्जा संवर्द्धन के प्रयोग शान्ति का प्रश्न हमारी गहरी चेतना के साथ जुड़ा हुआ है। ध्यान का प्रयोग इसीलिए किया जाता है कि हम उस चेतना के स्तर तक पहुंच सकें, वहां पहुंचकर अपने आपको समझ सकें, देख सकें और अपने आपको स्वस्थ बना सकें। ध्यान का प्रयोग भावना को परिष्कृत करने का प्रयत्न है। परिष्कार कब संभव है ? वह सिद्धान्ततः संभव नहीं है, पढ़ने से संभव नहीं है, जान लेने मात्र से संभव नहीं है। उसके लिए विशेष प्रकार की शक्ति का अर्जन जरूरी है। दीर्घश्वास का प्रयोग, आसन का प्रयोग, शरीर को देखने का प्रयोग-ये जितने प्रयोग हैं, वे सब प्राणऊर्जा के संवर्द्धन के प्रयोग हैं। इनसे प्राणशक्ति बढ़ती है। यह निश्चित तथ्य है-शक्ति और शान्ति को कभी अलग नहीं किया जा सकता। कमजोर आदमी कभी शान्ति का अनुभव नहीं कर सकता। शान्ति का अनुभव वही कर सकता है, जो शक्तिसंपन्न है। कमजोर आदमी का काम तो भीख मांगना होता है, वह कभी संपन्न नहीं हो सकता। हमारा शरीर, मन और भावना का तंत्र कमजोर है और हम शान्ति की कामना करें, तो यह कभी संभव नहीं है। जिसके ये तंत्र कमजोर हैं, वह जरा-सी प्रतिकूल बात सुनते ही उत्तेजित हो जायेगा। पूरे दिन का खाना-पीना हराम जो जायेगा। छोटी-सी प्रतिकूल
४६ / विचार को बदलना सीखें
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