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चिकित्सा करने वाला, दूसरों को स्वस्थ करने वाला स्वयं को अस्वस्थ बता रहा था। शरीर से वह हट्टा-कट्टा और स्वस्थ दिखाई देता था, किन्तु मन से वह अस्वस्थ था।
चेतना के तीन स्तर प्रश्न है-हमें शरीर चला रहा है या मन चला रहा है ? इस शरीर को मन चला रहा है तो मन को कौन चला रहा है ? मन को भाव चला रहा है। शरीर, मन और भाव-ये हमारे जीने के तीन स्तर हैं। हमारी चेतना तीन स्तरों पर काम कर रही है। पहला स्तर है शरीर का, दूसर स्तर है मन का
और तीसरा स्तर है भावना का। सबसे पहले हमारे सामने आता है शरीर। हम शरीर के आधार पर निर्णय लेते हैं-व्यक्ति कैसा है ? जिसे हृष्ट-पुष्ट
और मांसल देखा, उसे हम स्वस्थ मान लेते हैं। यह है हमारी स्थूल दृष्टि। केवल चमड़ी और चर्बी को देखकर अनुमान लगा लेते हैं अथवा रंग और आकार को देखकर एक दृष्टि बना लेते हैं। भीतर की बात समझ में नहीं आती। वह कितना दुःख पा रहा है, इसका बोध शरीर से नहीं होता। जब मन स्वस्थ नहीं है तो सुख पाने का प्रश्न ही नहीं होता। शरीर से मन सूक्ष्म है, इसलिए हम उसे नहीं पकड़ पाते, वह हमारी दृष्टि में नहीं आता। मन अस्वस्थ इसलिए है कि भावनाएं स्वस्थ नहीं हैं। भावना मन से भी ज्यादा सूक्ष्म है।
भावना से जुड़ा है शान्ति का प्रश्न शान्ति का प्रश्न शरीर से जुड़ा हुआ नहीं है। मन से कुछ जुड़ा हुआ है, किन्तु मन से भी पूरा जुड़ा हुआ नहीं है। वह जुड़ा हुआ है भावना से। जब तक भावनात्मक संतुलन नहीं होता, शान्ति की बात नहीं सोची जा सकती। कोई भी आदमी तब तक शान्ति का जीवन नहीं जी सकता, जब तक वह भावना का संतुलन न साधे। भावनात्मक दृष्टि से आदमी बहुत असंतुलित रहता है। उसी डॉक्टर ने बताया-मैं बहुत चिड़चिड़ा हो गया हूं। बात-बात में गुस्सा आता है। कुछ अजीब-सा स्वभाव बन गया है। मैंने कहा-'तुम इस धारणा को बदलो कि मेंटली अपसेट हो। तुम यह कहो-मैं मेंटली नहीं, इमोशनली अपसेट हूं। भावनात्मक दृष्टि से मैं स्वस्थ नहीं हूं,
धर्म और शान्ति / ४५
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