________________
बदलता, इस कथन में भी सचाई है और आदमी बदलता है, इस कथन में भी सचाई है। सचाई दोनों ओर है। हम चाहे जिसको पकड़ लें। प्रश्न केवल सही तरीके का है। एक वर्ष का कोर्स केवल मस्तिष्क के प्रशिक्षण का कोर्स होगा, बुद्धि को जगाने का नहीं। बौद्धिकता तो वैसे ही बहुत बढ़ी है। आज के शिक्षा संस्थानों में बौद्धिक विकास और बौद्धिक क्षमता को जगाने के जितने साधन हैं, वे शायद अन्यत्र नहीं मिलेंगे। किन्त आदमी को आदमी बनाने का प्रयत्न या पद्धति नहीं है, शान्ति और सामंजस्यपूर्ण जीवन जीने की बात नहीं है, इस सचाई को भी स्वीकार करना होगा।
कब समझ में आएगी यह बात ? शान्तिपूर्ण जीवन जीने की बात एक वर्ष में सिखाई जा सकती है। उसका केवल पाठ नहीं, प्रयोग और अभ्यास कराया जा सकता है। उस प्रशिक्षण के द्वारा मनुष्य ऐसा मस्तिष्क लेकर निकलेगा, जो अच्छा जीवन जीने में सहायक बनेगा। यह बात सबकी समझ में आयेगी या नहीं, आयेगी तो कब आयेगी, कहा नहीं जा सकता, क्योंकि ग्रहणशीलता में भी बहुत अन्तर होता है। जो भुक्तभोगी है, आज की शिक्षा की यातना भोग रहे हैं, उनके सामने यह बात रखी जाए तो वे बहुत जल्दी पकड़ लेंगे। हिन्दुस्तान के समाज ने अभी उतनी यातना नहीं भोगी है, जितना पश्चिम का समाज भोग चुका है। उच्छृखलता यहां अभी उतनी नहीं है, जितनी पश्चिम में है। किसी बात को जल्दी पकड़ लेना जरा मुश्किल काम है। इसमें बाधाएं भी बहुत आती हैं। दूसरी दुनिया में संस्कृत साहित्य की कहानी है। राजा भोज के दरबार में एक संस्कृत कवि आया। राजा भोज की प्रशंसा में उसने सुन्दर श्लोक पढ़े। राजा प्रसन्न हो गया। मंत्री से कहा- 'पंडितजी जो मांगें, उन्हें दिया जाए।' मंत्री ने पंडित कवि से पूछा- ‘मान्यवर, क्या चाहते हैं आप ? पंडित को एक वाहन की जरूरत थी। वे बोले-'राजन् ! हमें एक अच्छा-सा घोड़ा दें।' राजा इच्छित वस्तु देने का आदेश दे चुका था, किन्तु बीच के लोग कहां मानने वाले
४० / विचार को बदलना सीखें
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org