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पश्चिम देश की घटना है। एक महिला ने कोर्ट में पति से तलाक की अर्जी दी। कारण बताया गया-'सोते समय मेरा पति जोर-जोर से खर्राटे लेता है, इससे मेरी नींद में बाधा पड़ती है।' वहां खराटे, खांसी और छींक भी तलाक का कारण बन रहे हैं।
प्रशिक्षण किसलिए ? इस प्रवृत्ति के समाधान का और कोई दूसरा उपाय दिखाई नहीं देता कि शिक्षा प्रणाली में कुछ सुधार लाया जाए, एक वर्ष तक कमाई करने के लोभ का संवरण किया जाए। इस चिंतन के साथ अच्छा जीवन जीने की कला का प्रशिक्षण लें। एक वर्ष इस काम के लिए होना चाहिए। एक वर्ष यदि इतनी बड़ी कमी को पूरा करने वाला बनता है तो इससे अच्छी
और कोई बात नहीं हो सकती। इससे एक ऐसा वातावरण पैदा होगा, जिससे समाज अधिक स्वस्थ और परिवार अधिक सुखी होंगे। प्रश्न हो सकता है-इस एक वर्ष की अवधि में विद्यार्थी क्या पढ़ेगा ? सुना है-जापान में शिक्षा संपूर्ण करने के बाद विद्यार्थियों को छह महीने का एक कोर्स कराया जाता है। यह लगभग ध्यान का ही कोर्स होता है। इससे उनकी एकाग्रता की क्षमता बढ़ जाती है, मनोबल बढ़ जाता है, संकल्पशक्ति और सहन करने की क्षमता बढ़ जाती है। इस प्रशिक्षण के कारण आगे चल कर वे हर काम में सफल होते हैं। उनमें दायित्वबोध और कर्तव्यबोध की भावना भी जाग जाती है। यदि एक सामाजिक व्यक्ति में इतनी सारी विशेषताएं आ जाएं तो वह अपने राष्ट्र का सफल और श्रेष्ठ नागरिक कैसे नहीं बनेगा ?
सचाई दोनों ओर है जरूरत केवल मस्तिष्क को प्रशिक्षित करने की है। ऐसा नहीं है कि व्यक्ति को बदला नहीं जा सकता। प्रेक्षाध्यान के प्रयोगों से यह पूर्णतया सिद्ध हो चुका है कि व्यक्ति को बदला जा सकता है। उसके स्वभाव को, प्रवृत्तियों, रुचियों और आदतों को बदला जा सकता है। बदले हैं लोग। मस्तिष्कीय प्रशिक्षण का तरीका सही नहीं है तो उसके वांछित परिणाम नहीं आएंगे, किन्तु तरीका सही है तो निश्चित रूप से परिवर्तन होगा। आदमी नहीं
धर्म और शिक्षा / ३६
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