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जगत् तो वैसा ही है। क्रोध वैसा ही, अहंकार वैसा ही, लोभ वैसा ही, भय भी वैसा ही, कामवासना भी वैसी ही। इधर बुद्धि को और तेज बना दिया इसका अर्थ क्या हुआ ? अनपढ़ आदमी किसी बात को आसानी से सह लेगा किन्तु पढ़ा-लिखा आदमी मन के प्रतिकूल कोई बात को सह नहीं पाएगा, तुरंत उसका अहंकार जाग जायेगा। 'मैं गंवार हूं' ? 'क्या मैं मूर्ख हूं ?-ऐसे जुमले प्रतिक्रिया में सुनने को मिलेंगे। उसके लिए उसका अहंकार दुःखद बन जायेगा। वह मां, बाप और भाई को भी सहन नहीं कर सकेगा। उसका वह अहंकार स्वयं के लिए पीड़ादायी बन जायेगा। इस प्रकर की घटनाएं बहुत होती हैं। पढ़े-लिखे लोग आज ज्यादा दुःखी देखे जाते हैं। अनपढ़ आदमी का अहंकार उतना नहीं जागेगा, वह उतना ज्यादा संवेदनशील नहीं होगा, क्योंकि वह बात को आई-गई करना जानता है। पढ़े-लिखे के लिए ऐसा करना संभव नहीं होता। संवेदनशील उपकरण सूक्ष्म से सूक्ष्म बात को भी पकड़ लेता है। आज हम माइक्रोवेव सिस्टम को जानते हैं। आज का पढ़ा-लिखा वर्ग भी माइक्रो हो रहा है। जिसने माइक्रो बाइलोजी पढ़ी है, वह इस बात से परिचित है। असंतुलन शिक्षा के क्षेत्र में एक असंतुलन शिक्षा के क्षेत्र में बनता जा रहा है। एक ओर विद्यार्थी की सोच और समझ की शक्ति को बहुत प्रखर बनाया जा रहा है, सूक्ष्मग्राही बनाया जा रहा है, दूसरी ओर उसके आवेशों अथवा भावों को अपरिष्कृत रख रहे हैं। यह असंतुलन न केवल आज पारिवारिक स्थिति में बहत गड़बड़ी पैदा कर रहा है, अपितु अपराध में भी बहुत सहयोग दे रहा है। स्थिति यह बन रही है कि सहन करना जैसे कोई जानता ही नहीं। तलाक की पूर्व भूमिका यहीं से बनती है। हिन्दुस्तान अभी पूरी तरह से इसकी गिरफ्त में नहीं आया है, किन्तु शुरुआत यहां भी हो गयी है। विकसित देशों में तलाक की घटनाएं आम हो चली हैं। अभी एक समाचारपत्र में इसके कुछ आंकड़े देखे। वहां प्रति ढाई मिनट में एक तलाक हो रहा है। यह सहनशीलता की कमी का दुष्परिणाम है। पति-पत्नी दोनों में से कोई भी सहनशील नहीं है तो तलाक और कलह नहीं होगा तो क्या होगा ? कोई अनपढ़ स्त्री होती तो सहन कर लेती, किन्तु दोनों हाई एजुकेटेड हैं तो कौन किसे सहन करे ?
३८ / विचार को बदलना सीखें
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