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उपयुक्त शिक्षा और उपयुक्त वातावरण मिलता है तो भीतर में भी अमृत प्रकट हो जाता है और बाहर भी अमृत झरता है। उपयुक्त शिक्षा और वातावरण न मिले तो भीतर में भी जहर पैदा हो जाता है और बाहर भी जहर पैदा हो जाता है। समाज का सबसे अहम प्रश्न है शिक्षा। किस व्यक्ति को किस प्रकार की शिक्षा मिल रही है, किस प्रकार का प्रशिक्षण
और वातावरण मिल रहा है, यह बहुत मूल्यवान् और महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। इस प्रश्न पर जितना ध्यान केन्द्रित होना चाहिए था, नहीं हो रहा है। यदि हो रहा है तो ठीक से उसका क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है।
दो समस्याएं आज सबके सामने यह प्रश्न है-मनुष्य का सही ढंग है निर्माण नहीं हो रहा है। कुछ वर्ष पूर्व एक केन्द्रीय मंत्री ने कहा- 'जब नयी शिक्षानीति का निर्धारण किया गया तो दो समस्याएं हमारे सामने थीं। आज भी वे समस्याएं विद्यमान हैं। पहली समस्या है-सांस्कृतिक व्यक्तित्व का विकास कैसे हो ? भारत की जो प्राचीन संस्कति रही है, उसके प्रति हमारी जागरूकता कैसे बढ़े ? दूसरी समस्या है-आध्यात्मिकता का विकास कैसे हो ? ये भारत की दो बड़ी विशेषताएं हैं। इन दोनों के लिए अभी कोई रास्ता नहीं मिला है, इसलिए ये समस्याएं आज भी ज्यों की त्यों बनी हुई हैं। हमने शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्ति को विभक्त कर देखा है। व्यक्ति को तैयार कर देना, एक पुर्जा बना देना, एक साधन बना देना शिक्षा से संभव बन रहा है। साधन बनाने की शिक्षा तो हमारे पास है, किन्तु मूल्यवान् बनाने की शिक्षा हमारे पास नहीं है। साधन इस अर्थ में बना दिया कि मनुष्य धन का अर्जन कर सके। ऐसे उपाय खोज सके, जिनके द्वारा धन बढ़े, सुविधा बढ़े और किसी वैज्ञानिक, तकनीकी या किसी विशिष्ट क्षेत्र में उसकी क्षमताएं प्रकट हों। इतना सब किया जा रहा है, किन्तु वह अपने आप में आदमी बन सके, ऐसा शायद कोई प्रयत्न नहीं हो रहा है।
वह कारखाना नहीं है
पूज्य गुरुदेव पटना पधारे। पटना विश्वविद्यालय में स्वागत का कार्यक्रम था। भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन ने उस कार्यक्रम में एक बड़े मार्के
धर्म और शिक्षा / ३५
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