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की बात कही-'आचार्यजी ! हिन्दुस्तान आजाद हुआ। आजाद होने के बाद देश में कल-कारखानों का बहुत विकास हुआ, पर एक बात की कमी आज बहुत खटकती है। ऐसा कोई कारखाना नहीं लगाया गया, जिसमें आदमी आदमी बन सके। सभी तरह के कारखाने लगाए गये, किन्तु आदमी बनाने वाला एक भी कारखाना नहीं लगाया गया। अच्छे आदमी पैदा नहीं हो रहे हैं, बन नहीं रहे हैं।'
एक लड़के से किसी ने पूछा-'तुम्हारे गांव में कोई बड़ा आदमी पैदा हुआ है ? वह बोला-'नहीं श्रीमान् जी ! हमारे गांव में तो सब बच्चे ही पैदा होते हैं। बड़ा आदमी एक भी पैदा नहीं हुआ।
बच्चों का कारखाना है, बच्चे पैदा होते हैं, किन्तु अच्छा आदमी पैदा नहीं होता। अच्छा आदमी बनाने की समस्या का अनुभव आज सारा हिन्दुस्तान कर रहा है। हिन्दुस्तान ही नहीं, पूरा विश्व कर रहा है। कोरे बौद्धिक और वैज्ञानिक को ही आदमी नहीं माना जा सकता। उसे आदमी भी माना जाएगा तो पचास प्रतिशत ही माना जाएगा। जब तक चरित्र का विकास नहीं होता, आध्यात्मिकता का विकास नहीं होता, तब तक आदमी पूरा आदमी नहीं बनता है। आदमी की कमी आज पूरी नहीं हो रही है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में ऐसा कुछ नहीं है, जिससे इस कमी को पूरा किया जाए। यह शिक्षण की समस्या आज सबके सामने है। सार्थकता शिक्षा की प्रश्न हो सकता है-आज इस समस्या की चर्चा का अर्थ क्या होगा ? क्योंकि शिक्षा का संचालन पूर्ण रूप से राज्य सरकारों के द्वारा हो रहा है। राज्य सरकार के प्रतिनिधि ही पाठ्यक्रम तैयार करते हैं, उनके ही आदमी पढ़ाते हैं, वे ही परीक्षाएं लेते हैं। किसी का उसमें हस्तक्षेप नहीं है तो उसकी चर्चा करने का क्या औचित्य है ? मेरे मन में भी यह प्रश्न पैदा होता है। फिर भी मैं जो कह रहा हूं, वह सोचे-समझे बिना नहीं कह रहा हूं। शिक्षा के बारे में हमारा जो चिंतन और क्रियान्वयन है, वह एक सुदीर्घ और सुचिंतित धारणा के आधार पर है। शिक्षा प्रणाली न आपके हाथ में है, न हमारे हाथ में है, फिर भी इसकी सार्थकता है, निरर्थकता नहीं। निरर्थक उपक्रम सिवाय कलह के और कुछ पैदा नहीं करता।
३६ / विचार को बदलना सीखें
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