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तो कहा जा सकता है-हाइपर टेंशन, विक्षिप्तता, अनिद्रा आदि इसी जीवनशैली की देन हैं। इस जीवनशैली को बदलना है। केवल पदार्थ के पीछे चल रही इस अंधी दौड़ को छोड़ तीसरे प्रकार की जीवनशैली को अपनाना है। इस तीसरे प्रकार की जीवनशैली में पदार्थ को भी स्थान है और चैतन्य को भी स्थान है। पदार्थ के बिना जीवन की यात्रा नहीं चलती, समाज का विकास भी नहीं हो पाता। जीवन की जो सामान्य सुविधा है, वह भी नहीं मिलती। इसलिए हम पदार्थ की उपेक्षा नहीं कर सकते। प्रतिशत की भाषा में पचास प्रतिशत पदार्थ को स्थान दें तो पचास प्रतिशत चैतन्य को स्थान दें। चैतन्य का स्थान अधिक होना चाहिए, किन्तु उतना न हो सके तो कम से कम पचास प्रतिशत महत्त्व तो उसे मिलना ही चाहिए। इस तरह की जीवनशैली निर्मित जो जाए तो जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन घटित होगा। भाव-परिवर्तन का यह बहुत बड़ा आधार बनेगा। इस भूमिका पर हमारे भाव बदलेंगे तो विचार अपने आप बदलने लग जाएंगे। हमें विचार के लिए अलग से चिंता करने की जरूरत नहीं होगी।
विचारों में गहराई आए सत्य की खोज का एक परिणाम है भाव-परिवर्तन। भाव-परिवर्तन का परिणाम है-विचार-परिवर्तन और विचार-परिवर्तन का अर्थ है जीवनशैली में परिवर्तन । यह एक पूरी श्रृंखला है। हम इस श्रृंखला के साथ चलें और वस्तुस्थिति का अंकन करें तो ध्यान की सार्थकता है। ध्यान आंख मूंद कर बैठने और समय व्यतीत करने का उपक्रम नहीं है। वह पूरा जीवन-दर्शन है। मैं तो यह मानता हूं-राजनीति का दर्शन भी ध्यान के बिना पूरा नहीं होता, समाज का दर्शन भी ध्यान के बिना पूरा नहीं होता। आर्थिक दर्शन भी ध्यान के बिना अधुरा है। हमारे जीवन की जितनी सारी प्रणालियां हैं. वे ध्यान के बिना पूरी नहीं होतीं। हम केवल वैचारिक स्तर पर सारी बात करते हैं। हमारी राजनीति भी केवल विचार के स्तर पर चलती है। समाज भी विचार के स्तर पर ही चलता है। मेरी दृष्टि में यह इतना उथला पानी है, जिसमें जहाज नहीं चल सकता। जहाज समुद्र में चल सकता है या नदी के गहरे पानी में चल सकता है, किन्तु थाली के पानी में कोई जहाज नहीं
३२ / विचार को बदलना सीखें
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