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________________ किन्तु एक निश्चित समय पर अतृप्ति आपको थाली के सामने बैठा ही देती है। बहुत सारे लोग अतृप्ति के कारण ही खाते हैं, आवश्यकता के कारण नहीं। पदार्थ का धर्म है क्षण भर के लिए तृप्त करना, फिर अतृप्त बना देना, अतृप्ति के संसार का निर्माण कर देना, ऐसा अंधकार निर्मित कर देना, जिसमें सचाई का पता न चले। सूरज की धृष्टता राजा की सबसे प्रिय रानी जेठ की तपती दोपहरी में किसी कारण से खुले आंगम में निकली। तपती दोपहरी की तेज धूप ने उसके बदन को झुलसा दिया। वह तिलमिला कर राजा के पास पहुंची और बोली- 'लोग कहते हैं कि आप सबसे बली और समर्थ राजा हैं, किन्तु मैं आपको सबसे कमजोर समझती हूं। आपके शासन में सबको मनमानी करने की पूरी छूट है।' राजा ने रानी के रोष का कारण पूछा। रानी ने कहा-'इस सूरज ने मेरे साथ धृष्टता की है। इसे जब तक अपने राज्य से आप बाहर नहीं कर देंगे, मैं आपसे नहीं बोलूंगी।' रानी की बड़ी विचित्र मांग थी पर गुस्से में आदमी क्या नहीं करता ? राजा मोहान्ध था, किन्तु था समझदार। उसने अपने सेनापति को बुलाया और आदेश दिया- 'तोपों के इतने गोले दागो कि सूरज दिखाई न दे।' राजा का आदेश क्रियान्वित हुआ। सूरज को लक्ष्य कर गोले दागने शुरू हो गए। धुएं के बादलों से आकाश आच्छादित हो गया, सूरज ढक गया। रानी को संतोष हुआ कि उसकी इच्छा का पालन किया गया है। कहानी वर्तमान जीवनशैली की आदमी मोह में इतना फंसता चला जाता है कि सचाई को झुठला देता है। पदार्थ की यह अतृप्ति सचाई को झुठला देती है। ऐसा संस्कार बन जाता है कि व्यक्ति मान लेता है-पदार्थ ही जीवन है, उससे परे कुछ भी नहीं है। उसका कोई विकल्प नहीं है। यह जीवनशैली बहुत भ्रान्ति पैदा करने वाली सिद्ध हुई है। सामान्य आदमी आज इसी शैली से जीवन जी रहा है। आज की बहुत सारी बीमारियां-कैंसर, हार्ट-अटैक, पेप्टिक अल्सर आदि-आदि इसी जीवनशैली को परिणाम हैं। मानसिक दृष्टि से विचार करें विचार को बदलना सीखें / ३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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