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________________ तीन प्रकार की जीवनशैलियां हैं १. पदार्थापेक्ष जीवनशैली। २. आत्मापेक्ष जीवनशैली। ३. उभयापेक्ष जीवनशैली। पहली जीवनशैली वह है, जो पदार्थ को सब कुछ मानकर चलती है। उसका मत है-दुनिया में जो कुछ भी सारभूत है, वह पदार्थ है। खाओ, पीओ, मौज करो, संग्रह करो-बस, यही इस जीवनशैली का मूलमंत्र है। केवल पदार्थ की परिक्रमा। आगे पदार्थ, पीछे पदार्थ, दायें पदार्थ, बायें पदार्थ। चारों ओर पदार्थ से घिरा हुआ जीवन। दूसरी जीवनशैली चैतन्यापेक्ष या आत्मापेक्ष है। जो व्यक्ति केवल अपने चैतन्य पर ध्यान केन्द्रित कर सचाई को पाना चाहता है, उसी में इतना लीन हो जाता है कि बाहर की किसी चीज पर उसका ध्यान ही नहीं जाता, वह आत्मापेक्षी होता है। जैन साधना के क्षेत्र में इस तरह की साधना करने वाले लोगों को प्रतिमाधारी, एकलविहारी या आत्मसाधक कहा गया है। ___जीवन की तीसरी शैली है-उभयापेक्ष। जो पदार्थ की भी चिंता करता है और अपनी आत्मा की भी चिंता करता है, वह उभयापेक्षी होता है। जरूरी है तीसरी श्रेणी का विकास ध्यान करने वाले व्यक्ति में कम से कम इस तीसरी श्रेणी का विकास होना जरूरी है। दूसरी श्रेणी प्रत्येक आदमी के लिए सरल नहीं है। वहां तक तो कोई विरल व्यक्ति ही पहुंच सकता है। सभी वहां तक नहीं पहुंच सकते। सामान्यजन की बात छोड़ दें, एक मुनि भी वहां तक सहसा नहीं पहुंच सकता। अकेले में रहकर केवल अपनी आत्मा की ही चिंता करना बहुत बड़ी साधना है। इतना निरपेक्ष बन पाना सबके लिए संभव नहीं है। व्यवहार की भाषा में उसे अव्यावहारिक भी कह सकते हैं। वह दूसरों के किसी काम का नहीं होता है इसलिए उसे हम छोड़ दें। शेष दो प्रणालियों में आज का आदमी जी रहा है। ध्यान से पदार्थापेक्ष जीवनशैली बदलेगी। पदार्थ के साथ-साथ अपनी चिंता होनी भी शुरू हो जायेगी। आत्मा की चिंता या चैतन्य के परिष्कार की चिंता होनी भी शुरू हो जायेगी। विचार को बदलना सीखें / २६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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