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________________ के सभी सदस्यों ने प्रस्ताव को सुनते ही ठुकरा दिया। हृदय का मांस देना मृत्यु को अंगीकार करना था। उसके लिए वे एक लाख मुद्राएं ही नहीं, करोड़ मुद्राएं भी लेने को तैयार नहीं हुए। कर्मचारी खाली हाथ वापस आ गये। लज्जा से सिर झुक गए आठवें दिन राजसभा जुड़ी। सम्राट् उपस्थित हुए। सब सभासदों ने एक स्वर से महाराज की कुशल-क्षेम पूछी, स्वास्थ्य को लेकर अपनी चिन्ता जताई। सम्राट् कुछ कहते, उससे पूर्व ही अभयकुमार ने खड़े होकर कहा-'हम लोगों का यह सौभाग्य है कि सम्राट् बहुत शीघ्र स्वस्थ हो गये। बिना दवा के ही स्वस्थ हो गये। वैद्यों ने तो दवा ऐसी चीज के साथ लेने का परामर्श दिया था, जो बहुत कठिन थी। जिस चीज के साथ दवा ली जानी थी, वह बहुत दुर्लभ है, कहीं मिल नहीं सकती। सम्राट ने उस वस्तु को जानने की उत्सुकता प्रकट की। अभयकुमार ने कहा- 'महाराज ! वैद्यजी ने दवा के लिए अनुपात के रूप में मनुष्य के हृदय के एक तोले मांस का परामर्श दिया था। किन्तु बहुत प्रयत्न करने पर भी हम एक तोला मांस प्राप्त नहीं कर सके। इसके लिए एक लाख स्वर्ण-मुद्राएं भी लोगों ने ठुकरा दीं।' महाराज श्रेणिक ने कहा-'अच्छा, इतने मूल्य में भी नहीं मिला ? अभयकुमार ने कहा- 'महाराज ! मिलता कैसे ? मैंने तो पहले ही कहा था-सबसे अधिक मूल्यवान् है मांस।। अभयकुमार ने उसी समय एक और सचाई का बोध कराते हुए कहा-'महाराज ! यह कितनी विचित्र बात है कि हमारे राज्य के सभी उच्चाधिकारी मांसाहारी हैं, मांस खाते हैं, किन्तु अपने शरीर से एक भी तोला मांस अलग करने की हिम्मत नहीं कर पाये। निरीह पशुओं के पूरे शरीर का मांस काट कर खा जाने वाले ये लोग सोच भी नहीं सकते कि शरीर के एक तोले मांस के कटने में भी कितना कष्ट होता है, वहां उपस्थित सभी मंत्रियों, अधिकारियों के सिर लज्जा से झुक गये। विचार को बदलना सीखें । २७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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