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सबसे मूल्यवान् क्या है ? कहानी प्राचीन है, किन्तु है बड़ी मार्मिक। ढाई हजार वर्ष पहले की बात है। सम्राट् श्रेणिक एक दिन अपनी राजसभा में बैठा था। महामात्य अभयकुमार भी पास में बैठा था। सभी दरबारी और सामन्त उपस्थित थे। चर्चा चल रही थी। चर्चा का विषय था-'सबसे मूल्यवान् चीज क्या है? किसी ने कहा-'हीरा बहुत मूल्यवान् है। किसी ने कहा-पन्ना बहुत मूल्यवान् है। किसी ने सोने को मूल्यवान् बताया। जिसकी जैसी धारणा थी, उसने वैसा मंतव्य प्रकट किया। सबके अलग-अलग मत थे। सबसे अन्त में महामात्य अभयकुमार की बारी आई। सम्राट् उसका विचार जानने के लिए उसकी ओर उन्मुख हुए। अभयकुमार दो मिनट मौन रहा, फिर गंभीरता से बोला-'सबसे अधिक मूल्यवान् है-मांस ।' अभयकुमार के उत्तर को सुन सभी सभासद मन ही मन हंस पड़े। उन्होंने सोचा- 'बच्चों जैसा उत्तर है। टके सेर बिकने वाली चीज को महामात्य सबसे कीमती बता रहे हैं। बात सम्राट् के गले भी नहीं उतरी। सूक्ष्ममेधा वाला व्यक्ति सत्य की तह तक पहुंच कर बात करता है। उसकी बात साधारण आदमी की समझ से परे होती है। महामात्य की बात किसी की समझ में नहीं आई। सम्राट बोला-'अभयकुमार ! तुम्हारी बात समझ में नहीं आई, किन्तु हास्यास्पद-सी लगी। तुम अपनी बात को प्रमाणित करो, अथवा अपनी बात को वापस लो।' अभयकुमार बोला-'राजन् ! मैंने बहुत सोच-समझकर कहा है। मैं अपनी बात को प्रमाणित करूंगा।
सम्राट ने उसे एक सप्ताह का समय दिया। सभा विसर्जित हो गयी।
प्रस्ताव अभयकुमार का तीन दिन बीत गये। चौथे दिन अभयकुमार ने प्रजा में घोषणा करवा दी-सम्राट् रुग्ण हो गये हैं। उसने अपने विश्वस्त कर्मकरों को राज्य के प्रमुख व्यक्तियों के पास भेजा। उनके साथ यह संदेश प्रेषित किया- 'महाराज की चिकित्सा करने वाले वैद्यों ने कहा है कि उन्हें दी जाने वाली दवा मनुष्य के हृदय के मांस के साथ दी जायेगी, तभी वह कारगर होगी अन्यथा सम्राट को स्वस्थ नहीं किया जा सकता। इसलिए आप अपने हृदय का एक तोला मांस दें। उसके मूल्यस्वरूप एक लाख स्वर्ण-मुद्राएं दी जाएंगी। राजसभा २६ / विचार को बदलना सीखें
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