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होगी। न विचार के जगत् में अटकना है और न विचार के जगत् में भटकना है। इतना मात्र जान लेना है कि मुझे एक सूचना मिली है, अब मुझे सावधान हो जाना है। यदि अच्छी सूचना मिले, अच्छे विचार आएं तो और आगे बढ़ने का संकल्प, यदि बुरे विचार आएं, बुरी सूचना मिले तो उसके परिष्कार का संकल्प। कैसे बदल सकते हैं विचार ? प्रश्न है-यह संकल्प कैसे संभव बने ? इसके लिए एक सूत्र पर ध्यान देना है और वह यह है-'विचार को बदलना सीखें।' ध्यान इसमें हमारी सहायता करता है। ध्यान का एक मुख्य प्रयोजन है विचार को बदलना। हम विचार को बदलना सीखें। विचार को कैसे बदल सकते हैं ? क्योंकि हम पहले ही कह चुके हैं कि विचार भीतर से आ रहा है। हवा की गंध को कैसे बदला जा सकता है ? हवा में सुगंध या दुर्गंध है तो उसे कैसे बदला जा सकता है ? परिणाम को कभी बदला नहीं जा सकता। इस स्थिति में हम विचार को कैसे बदलें ?
विचार को बदलना है, इसका तात्पर्य है-भाव का परिवर्तन करना है, भाव को बदलना है। मूल है भाव। भाव में सुगंध भी है, दुर्गंध भी है। यदि भाव सुगंधित हैं तो उनका आगे विकास करना है। यदि उनमें कोई दुर्गंध है तो उसका परिष्कार करना है।
सत्य की खोज ध्यान के आचार्यों ने इसके लिए जो मार्ग सुझाया है, वह है सत्य की खोज। सत्य की खोज के द्वारा ही यह काम किया जा सकता है। सत्य की खोज के बिना भावों को बदला नहीं जा सकता और भावों को बदले बिना विचारों को बदला नहीं जा सकता। इसलिए सत्य की खोज बहुत जरूरी है। हम स्थूल बात पर न अटक जाएं। गहरे में जाएं, गहरे में उतरें। गहरे में आदमी उतरता है तो उसे ऐसा सत्य उपलब्ध होता है कि उसका पूरा जीवन बदल जाता है। स्थूल जगत् में जीने वाला व्यक्ति अपने जीवन को कभी नहीं बदल पाता। जो सूक्ष्म में जाता है, उसका चिंतन, धारणाएं, मान्यताएं, जीवन-सब कुछ बदल जाता है।
विचार को बदलना सीखें / २५
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