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है। प्राचीनकाल में एक राजा का संदेश दूसरे राजा तक पहुंचाने का काम दूत ही करते थे। तब इसका और कोई दूसरा साधन नहीं था। दूत ही उनके संदेशों का आदान-प्रदान करते थे। दूत कोई कड़ी बात कहता तो भी उसे दंडित नहीं किया जाता था। वह सर्वथा क्षम्य होता था। इतिहास की अनेक घटनाएं इस तथ्य की साक्षी हैं-दूत ने जाकर राजा को ऐसी खरी-खोटी सुनाई कि राजा तिलमिला कर रह गया। उसने म्यान से तलवार खींच ली, किन्तु दूत को अवध्य मान कर वह कुछ नहीं कर सका। यह एक राजनीतिक सीमा थी, व्यवस्था थी। अपमान और तिरस्कार सहकर भी इस सीमा का अतिक्रमण नहीं किया जाता था।
निदर्शन बाहुबली का चक्रवर्ती भरत ने दूत को बाहुबली के पास भेजा। दूत ने बाहुबली को भरत का संदेश दिया। दूत ने कड़ी भाषा में संदेश को नमक-मिर्च लगाकर चटपटा बना दिया। बाहुबली को बहुत क्रोध आया। वे स्वाभिमानी थे। किसी की बात को सहन करने वाले नहीं थे। साथ ही साथ पराक्रमी भी थे। उन्हें अपने बाहुबल पर पूरा भरोसा था। उनका नाम ही था बाहुबली। वे ऐसी चट्टान थे, जिसे कोई झुकाने वाला न था। बहुत क्रोध आया उन्हें दूत की बात पर। दूत ने भरत की महिमा का बखान करते हुए बाहुबली को उनकी सेवा करने, उनकी अधीनता स्वीकार करने का उपदेश दिया था
और ऐसा न किये जाने पर दंडित किये जाने की धमकी भी दी थी। बाहुबली दूत की बात सुनकर तिलमिला उठे। किन्तु फिर संयत होकर बोले- 'दूत ! तू बड़ा वाचाल है। लगता है वाणी पर तुम्हारा संयम नहीं है। तुम्हारी यह धृष्टता सहन नहीं की जा सकती। किन्तु तू दूत है इसलिए मौन धारण कर और शीघ्रता से यहां से चला जा। विचार भी दूत है अंगद और हनुमान को भी दूत मानकर महाबली रावण ने क्षमा कर दिया था। दूत अवध्य होता है, उसे मारा नहीं जाता। विचार भी दूत है। यह भीतर का संदेश बाहर तक पहुंचा देता है। इतना-सा ही काम है इसका। हम यदि विचार पर ही क्रुद्ध और राजी होकर अटक गये तो बड़ी भ्रान्ति
२४ / विचार को बदलना सीखें
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