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तो दुर्गन्ध लायेगा। ठीक वैसे ही अगर अच्छा भाव मिला तो विचार अच्छा ले आयेगा। भीतर में बुरा भाव मिला तो बुराई ले आयेगा। यह तो मात्र वाहक है, दूत है, जो समाचार को पहुंचा देता है। यदि आन्तरिक व्यक्तित्व को जानना है तो उसका बहुत अच्छा माध्यम है विचार । जैसा विचार आए, समझना चाहिए कि हमारा आन्तरिक व्यक्तित्व भी वैसा है। हम आन्तरिक व्यक्तित्व को देख नहीं सकते। हमारे पास उसे देखने का कोई साधन नहीं है। किन्तु विचार एक अच्छा माध्यम है। उसके द्वारा हम अपने आन्तरिक व्यक्तित्व को जान सकते हैं, पहचान सकते हैं, परख सकते हैं।
बाहरी प्रभाव का सूचक विचार सूचक है बाहरी प्रभावों का। बाहर से भी प्रभाव पड़ते हैं मनुष्य पर। विचार उनका सूचक बनता है। ग्रहों का प्रभाव मनुष्य पर पड़ता है। सौरमण्डल के ग्रहों का विकिरण और प्रभाव मनुष्य पर पड़ता है। बिना प्रयोजन मनुष्य निराशा से भर जाता है। बिना मतलब आदमी उत्तेजित हो जाता है। हीन भावना और अहंकार की भावना भी आ जाती है। बाहर का प्रभाव भी होता है। ग्रहों का प्रभाव, वातावरण का प्रभाव, व्यक्तियों का प्रभाव और वस्तुओं का प्रभाव। बेचारे मन को दोनों और का भार ढोना पड़ता है-इधर भीतर का बोझ, उधर बाहर का बोझ। यह ऐसा बीच में पड़ गया है कि इसका काम ही भार ढोना हो गया। बस, जो भी आता है, इस पर बोझ लाद देता है।
अवध्य होता है दूत यदि हम विचार को ही पकड़ेंगे तो समस्या का समाधान नहीं हो सकेगा। अध्यात्म के आचार्यों ने इस सचाई को बहुत पहले समझ लिया था। इसलिए उन्होंने कहा-'विचार पर ज्यादा बोझ मत लादो, अतिरिक्त बोझ मत लादो। ज्यादा भार लाद दिया तो वह दब जायेगा, टूट जायेगा, कुछ मिलेगा नहीं। प्याज के छिलके उतारते चले जाओ, कुछ बचेगा नहीं। जो सूचना देने वाला है, उस पर न तो क्रोध करो और न ज्यादा प्रसन्न बनो । बस, यही समझो कि वह बेचारा मात्र संचार का काम करने वाला है, दूत का काम करने वाला है। संस्कृत साहित्य में बहुत स्पष्ट कहा गया है-दूत अवध्य होता
विचार को बदलना सीखें । २३
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