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________________ उनकी प्रेक्षा करते रहें, वे आपकी परेशानी और उद्विग्नता का कारण कभी नहीं बनेंगे। जिन लोगों को ध्यानकाल में बहुत विचार आते हैं, उन्हें विचारप्रेक्षा का प्रयोग करना चाहिए। दिल्ली के चांदनी चौक के रास्ते से दिन-रात कितनी गाड़ियां, वाहन दौड़ते रहते हैं। सड़क के किनारे की दुकान का दुकानकार अगर उन्हीं पर ध्यान देता रहे तो पागल हो जाए। वह ध्यान देता है अपने धंधे पर। बाकी सब चीजों को वह देखकर भी अनदेखा कर देता है। ध्यान के साधक को भी यही करना है। यदि यह जागरूकता बनी रहे, दृष्टिकोण सही हो जाए तो सब ठीक हो जाए। एक महिला ने मकान की ऊपरी मंजिल से एक पका आम गिराया। नीचे खड़े भिखारी ने उस आम को उठा लिया और खाने लगा। महिला ने ऊपर से आवाज देकर पूछा-'क्यों, अच्छा है न ? भिखारी बोला-'बस, ठीक-ठाक है।' महिला ने पूछा-'ठीक-ठाक है, इसका क्या मतलब ? भिखारी बोला- 'मतलब यही है कि इससे अच्छा होता तो आप उसे न गिरातीं और अगर इससे ज्यादा सड़ा होता तो मैं न खाता। इसलिए बस, ठीक-ठाक है। शक्ति है देखने में हम प्रत्येक बात को सम्यक्दृष्टि से लें। ध्यान की अवस्था में बहुत बुरे विचार आते हैं तो ध्यान ही नहीं हो पाता और यदि कोई विचार न आता तो हम समाधि की अवस्था में चले जाते, ध्यान की जरूरत ही न रह जाती। इसलिए हमारी यह ध्यान की क्रिया बस ठीक-ठाक है। मध्य का मार्ग है यह। न हम अति कल्पना करें और न निराश हों, केवल अपनी जागरूकता पर ध्यान दें, उसे निरंतर बढ़ाएं। देखने में बड़ी शक्ति है। हम देखने का अभ्यास बढ़ाएं। देखने का तात्पर्य हमारी जागरूकता से है। जैसे-जैसे प्रेक्षा की शक्ति बढ़ेगी, विचार आने भी कम हो जाएंगे। जहां आदर नहीं होगा, वहां कोई क्यों आयेगा ? अगर आप विचार का स्वागत करेंगे, उनसे अपनापा जोड़ेंगे तो वे आपका स्थायी मेहमान बनने की कोशिश करेंगे। उपेक्षा करेंगे तो वे स्वतः चले जाएंगे। जैसे-जैसे यह जागरूकता बढ़ेगी, विचार की समस्या समाहित होती चली जायेगी। विचार को देखना सीखें / २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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