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संबंध और विचार ___संबंध और विचार-दोनों परस्पर जुड़े हुए हैं। जहां संबंध है, वहां विचार का आना अनिवार्य है। यदि ध्यान के लिए आते समय सारे संबंधों से मुक्त होकर आते तो संभव भी हो सकता था, किन्तु बंध कर आते हैं, इसलिए इतना जल्दी छूट पाना संभव नहीं है।
इस सूत्र पर ध्यान दें-जितने ज्यादा संबंध, उतने ज्यादा विचार। जितनी ज्यादा संबंधमुक्तता का भाव, उतना ज्यादा निर्विचार। आप विचारों को रोकने का प्रयत्न न करें, पहले संबंधों को कम करने का प्रयत्न करें। आपने अनुबंध कर लिया-तीन बजे मिलना है तो ढाई बजे ही आपका मानसिक भाव बदल जायेगा और आप घड़ी देखना शुरू कर देंगे। किसी
और काम में फिर मन नहीं लगेगा। अगर आधा घंटा की देरी हो जाए तो आपकी झुंझलाहट बढ़ जायेगी। आप इस भ्रम में न रहें-एक ही दिन में मन के सारे संकल्प-विकल्प समाप्त हो जाएंगे। ऐसा कभी न सोचें। एक-दो या पांच-सात दिनों के ध्यान से भी ऐसा संभव नहीं होगा। बिल्कुल यथार्थवादी होकर चलें, सचाई को समझ कर चलें। हमने अपने अनुबंधों का जितना विस्तार किया है, संबंधों को जितना विस्तुत किया है, उनके प्रति जब तक हमारी मूर्छा कम नहीं होगी, वे संबंध कम नहीं होंगे, तब तक विचारों के प्रवाह को कभी रोका नहीं जा सकेगा।
विचार की चिन्ता छोड़ें ध्यान करने वाले के लिए यह अपेक्षित है कि वह विचारों की चिंता छोड़े, पहले मूर्छा को कम करने की बात सोचे। यदि विचार आते हैं तो वे आपका क्या बिगाड़ते हैं ? आप उनके साथ जुड़ते हैं, तभी आपका कुछ बनता-बिगड़ता है, अन्यथा आपको उनसे कुछ भी लाभ-हानि नहीं होगी। आप अनुबंधों में फंसते हैं, विचारों में उलझते हैं, उनकी चिंता करते हैं, उनसे प्रभावित होते हैं, तो फिर आपका नुकसान होना ही है, परेशानी बढ़नी ही है। हमें विचारों के साथ जुड़ना नहीं है, विचारों के साथ बहना नहीं है। विचार आया और गया। जुड़ें नहीं, मात्र देखें। यदि ऐसा हुआ तो फिर विचार कोई कठिनाई पैदा नहीं कर सकेगा। आप तटस्थ बन जाएं, मध्यस्थ बन जाएं, द्रष्टा और ज्ञाता बन जाएं, विचारों को जानते-देखते रहें, २० / विचार को बदलना सीखें
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