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________________ के विकास का एक लक्षण है। किन्तु उससे अधिक हमारी क्षमताएं हैं। बहुत बार आपने अनुभव किया होगा-घर में बैठे-बैठे अचानक मन में एक बात आई कि कोई आ रहा है। मेरे परिवार का कोई आदमी या मेरा कोई मित्र आ रहा है और सचमुच वह बात सही हो जाती है। इसका कारण क्या है? कारण हमारी आन्तरिक चेतना है, मन से परे की चेतना है। उसका ही यह काम है। मैंने एक बात सोची और तत्काल वही बात दूसरे ने भी सोची। इधर मैंने कोई बात कही और उधर वहीं बात दूसरे ने भी बोली। क्या यह मन का काम है ? नहीं, यह मन का काम नहीं है। यह विचार-संप्रेषण या टेलीपैथी मन से परे की बात है। पूर्वाभास होना, घटना के बाद का आभास होना, दूसरे के विचार को जान लेना, दूर की बात को जान लेना-ये सारी विचारातीत और मन की क्षमता के परे की बातें हैं। अतीन्द्रिय चेतना कैसे जागे ? क्या हम मन को अपनी क्षमता का चरमबिन्दु मानें ? क्या विचार को हम विकास का एक मात्र हेतु मान लें ? नहीं, ऐसा मानना हमारी बड़ी भूल होगी। हमारी क्षमता इनसे कहीं ज्यादा है। ध्यान के द्वारा हमें एक नया आयाम खोलना है, अपनी अतीन्द्रिय चेतना को जगाना है। प्रश्न है-वह कब जागेगी ? अतीन्द्रिय चेतना को जगाने की तीन शर्ते हैं १. बुरे विचार न आएं। २. अनावश्यक विचार न आएं। ३. विचार बिल्कुल न आएं। यह विकास का क्रम है। यह न समझें कि आज ध्यान करने बैठे हैं और आज ही विचार आना बन्द हो जायेगा। यह संभव नहीं है, क्योंकि हमने अनगिनत संबंध जोड़ रखे हैं। व्यक्ति घर में बैठा है और कारखाना मन में चल रहा है। दुकान में बैठा है और परिवार पीछे चल रहा है। ध्यान-शिविर में आप अकेले आए हैं, पत्नी पीछे है, आपका मन उसकी चिन्ता में उलझा हुआ है। संबंध जोड़ रखा है हजारों चीजों के साथ और विचार किसी का न आए, यह कैसे संभव है। विचार को देखना सीखें / १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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