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________________ जा रहा है कि इस पर कुछ अंकुश होना चाहिए, कोई नियंत्रण होना चाहिए। नया मार्ग आदिमकाल में जब आदमी डरा होगा तभी उसने शस्त्र बनाए होंगे। पत्थर युग में पत्थर के हथियार और लाठी, तीर, कमान आदि बनाए। गोली-बारूद से होते हुए आज वह आणविक पक्षेपास्त्रों तक पहुंचा है। जैसे-जैसे विचार का विकास हुआ, वैसे-वैसे पदार्थ का भी विकास होता गया। दोनों साथ-साथ चले हैं। इस समस्या को ध्यान में रखकर एक नया मार्ग खोजा गया। विचार मनुष्य की एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। चिंतन की क्षमता मनुष्य की एक बड़ी विशेषता है। किन्तु चिंतन को कितना आगे बढ़ाएं, इसकी भी एक सीमा होनी चाहिए, एक नियंत्रण और अंकश होना चाहिए। जो विचार मानव जाति के लिए हितकर और कल्याणकारी हैं, वे ही विचार आगे बढ़ें और वे भी जैसे ही अनिष्टकारी या अहितकर होने लगें, वहीं उन पर ब्रेक लग जाए। विचार की शक्ति कल्याणकारी विचार भी निरंकुश रूप में आगे न बढें। उन पर भी नियंत्रण होना चाहिए। इसके बाद भूमिका बनती है निर्विचार अवस्था की। मनुष्य के विकास की पहली अवस्था है विचार । उसके बाद की अवस्था है निर्विचार। निर्विचार होने का मतलब विचारशून्य होना नहीं है। किन्तु एक सीमा पर विचार को बन्द कर अपनी अतीन्द्रिय चेतना को जगाना है। खोना नहीं है किन्तु शक्ति का और अधिक विकास करना है। विचार में बड़ी शक्ति है। पर उतनी नहीं है, जितनी कि हम मान रहे हैं। विचार की क्षमता बहुत छोटी है। विचार से अतीन्द्रिय चेतना की क्षमता कहीं ज्यादा बड़ी है। दार्शनिक भाषा में जिसे अवधिज्ञान कहा जाता है, अतीन्द्रिय चेतना या 'एक्स्ट्रा सेंसरी परसेप्शन' कहा जाता है, उससे केवलज्ञान की क्षमता और बड़ी है। मन की क्षमता से परे हम केवल मनस्वी नहीं हैं। मन ही हमारे लिए सब कुछ नहीं है। मन मनुष्य १८ / विचार को बदलना सीखें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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