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'तुम्हें पता है कि सम्राट का ही है ?
'हां, किन्तु आप 'किसका है' इसी पचड़े में पड़े रह गये। इसमें सम्राट ने आपको गुरु बनने के लिए लिखा था। आपने इसे खोलकर पढ़ने की भी जरूरत नहीं समझी और 'किसका है' 'किसने दिया' इसी की खोजबीन करते रह गये। अब समय बीत गया, इसका कोई महत्त्व नहीं रहा।' __ ऐसा लगता है-आज के संसार की यही स्थिति हो रही है। रुक्के को खोलकर पढ़ा नहीं जा रहा है। रुक्का कहां से आया, बस इसी में सब उलझकर रह गये हैं। मूल प्रश्न को हम नहीं छू रहे हैं। केवल बाहर की बातों में उलझे हुए हैं। हम पदार्थ में इतने उलझ गये कि पदार्थ को चलाने वाला जो फेक्टर है, उसे पढ़ने की जरूरत ही नहीं समझते।
ल प्रश्न का कहां से आया, बम । रुक्के
भुला दिया है निर्माता को पदार्थ और चेतना ये दो बातें हैं। पदार्थ का संचालक, नियामक और प्रवर्तक चेतना है। पदार्थ का निर्माण करने वाली चेतना है। कम्प्यूटर चाहे जितना विकसित हो गया हो, पर उसका निर्माण करने वाली चेतना है। चैतन्य के बिना कोई निर्माण नहीं हो सकता। हमने निर्माता को तो बिल्कुल भुला दिया और निर्मित वस्तु को पकड़ कर बैठ गए। कर्ता को भुला दिया और कृति में उलझ गये। प्रेक्षाध्यान का प्रयोजन है-पदार्थ और चेतना का विवेक करना, यह स्पष्ट समझ लेना कि पदार्थ, पदार्थ है और चेतना, चेतना। हम केवल पदार्थ के विकास के आधार पर मानवजाति को न बांटें, इसके साथ चेतना को भी जोड़ें। जिसकी चेतना जागृत नहीं हैं, जिसकी चेतना में कषाय, क्रोध, भय, ईर्ष्या आदि प्रबल है, वह राष्ट्र पदार्थ की दृष्टि से चाहे कितना ही विकसित हो गया हो, उस राष्ट्र को विकसित कहने में बहुत कठिनाई है। एक राष्ट्र विकसित तो कहलाता है, किन्तु यदि वह एक मानव से घृणा करता है रंगभेद के आधार पर, गोरे और काले के आधार पर तो उस राष्ट्र को विकसित कहने में मुझे तो कठिनाई है। एक राष्ट्र विकासशील कहलाए और दूसरे को अछूत माने तो यह उसके विकास पर प्रश्नचिह्न है।
१० / विचार को बदलना सीखें
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