________________
महात्यागी है राजा
एक राजा किसी तपस्वी के पास गया और उन्हें नमस्कार किया तपस्वी फक्कड़ स्वभाव का था । पता नहीं उसके मन में क्या आया उसने खड़े होकर राजा को नमस्कार किया । जो लोग राजा के साथ गये थे, यह बात उनकी समझ में नहीं आयी । राजा एक संन्यासी को नमस्कार करता है, यह व्यावहारिक बात है, किन्तु तपस्वी त्यागी व्यक्ति राजा को नमस्कार करे, यह सर्वथा विपरीत बात है । एक व्यक्ति ने पूछ लिया- 'महात्मन् ! राजा ने आपको नमस्कार किया, यह तो ठीक बात है, किन्तु आपने उठकर नमस्कार क्यों किया ? इसका रहस्य क्या है ?
संन्यासी ने पूछा - 'राजा ने मुझे नमस्कार क्यों किया ?
उसने कहा- 'आप त्यागी - तपस्वी हैं, इसलिए नमस्कार किया ।' 'मैं त्यागी हूं, किन्तु राजा तो महात्यागी है, इसलिए मैंने नमस्कार किया ।'
'राजा महात्यागी कैसे
हुआ ?
'मेरी बात ध्यान से सुनो। मैंने संसार को छोड़ा है, पदार्थ को छोड़ा है, नश्वर चीज को छोड़कर अविनाशी आत्मा को पाने का प्रयत्न किया है । मैंने तो नश्वर को छोड़कर अनश्वर को पाने का प्रयास किया है, किन्तु यह राजा भोगों में फंसा हुआ है, इसने शाश्वत और अविनश्वर तत्त्व को छोड़कर नश्वर और अशाश्वत तत्त्व को अपनाने का कार्य किया है । बताओ, त्याग मेरा बड़ा है या इस राजा का
विकसित होने का मापदण्ड
बहुत बड़ा प्रश्न हमारे सामने है। एक ओर नश्वर के लिए अविनश्वर और शाश्वत को त्यागना, दूसरी ओर अविनश्वर और शाश्वत के लिए नश्वर और अशाश्वत को त्यागना । जो लोग पदार्थवादी हैं और पदार्थ की दृष्टि से ही सारी उन्नति, सभ्यता और संस्कृति की माप करते हैं, उनकी दृष्टि में मूल्य केवल पदार्थ का है। उनकी दृष्टि में पदार्थ ही किसी देश के विकसित होने का मापदण्ड है । आज पूरा संसार तीन भागों में बंटा हुआ है
Jain Education International
जीवन की नई व्याख्या / ७
www.jainelibrary.org
For Private & Personal Use Only