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कहा गया है, वैसे ही मछलियां भी दूध और पानी को अलग कर देती हैं, नींबू भी दूध और पानी को अलग कर देता है। यह विवेक है, विवेचन है, पृथक्करण है। विवेक करें राजा ने अपने कर्मचारियों से पूछा-बताओ, चीनी और रेत आपस में मिल गयी, उनका विवेक कैसे किया जाए, उन्हें अलग कैसे किया जाए ? पानी डालने से तो कुछ हो सकता है, किन्तु पानी डाले बिना दोनों को अलग कैसे किया जाए ? आज कुछ साधन भी हो गये हैं, किन्तु पहले कुछ भी नहीं था, फिर भी एक बुद्धिमत्तापूर्ण उत्तर दिया गया-'महाराज, उस चीनी मिली रेत को जमीन पर डाल दें। चींटियां चीनी को खा जायेंगी, रेत रह जाएगी।
हमें भी विवेक करना है-चीनी अलग हो जाए, रेत अलग हो जाये, दूध अलग हो जाये और पानी अलग हो जाये। किन्तु व्यक्ति विवेक नहीं कर पाता, उलझ जाता है, इसीलिए हर आदमी प्रवृत्ति की ओर दौड़ता है, निवृत्ति की ओर नहीं देखता।
प्रवृत्ति बहुलता का परिणाम ऐसा लगता है-आज मनुष्य का सारा दृष्टिकोण एकांगी बन गया है। इस प्रवृत्ति की बहुलता और सक्रियता ने मानसिक बीमारियों और तनावों को जन्म दिया है, चिंतन की स्वस्थता को कम किया है। प्रवृत्ति की बहुलता होगी तो हमारा चिंतन साफ-सुथरा और नपा-तुला नहीं होगा। उसमें बहुत सारा कचरा और कूड़ा-करकट भी जमा हो जायेगा। व्यवहार के क्षेत्र में हमने निवृत्ति की बात को भुला दिया, केवल प्रवृत्ति को पकड़ लिया। एक भाई से पूछा-'तुम कभी ध्यान करते हो, अपने आपको देखने का प्रयत्न करते हो ? उसने बिल्कुल गढ़ा-गढ़ाया उत्तर दिया-'छह-सात बजे उठता हूं, फिर तैयार होकर दुकान पर चला जाता हूं। रात को दस-ग्यारह बजे लौट कर आता हूं। ऐसे में ध्यान के लिए समय कहां मिलता है ?
जीवन की नई व्याख्या / ५
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