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पर नियंत्रण करने की प्रक्रिया सिखाई जानी चाहिए। अपने आवेशों पर नियंत्रण कैसे करें, इसका प्रारम्भ से ही बच्चे को अभ्यास कराया जाना चाहिए। जो माता-पिता अपने बच्चों को इस तरह के संस्कार नहीं देते, वे उनके शत्रु हैं।
शत्रु हैं वे माता-पिता कहा गया –'माता शत्रु पिता वैरी याभ्यां बालो न पाठितः;-जो बच्चे को नहीं पढ़ाते हैं, वे माता-पिता उसके दुश्मन हैं। आज माता-पिता बच्चे को पढ़ा कर सोचते हैं-क्या मैंने इसे इसीलिए पढ़ाया था ? बच्चे के आचरण
और व्यवहार को देखकर आज अधिकांश अभिभावकों की यही प्रतिक्रिया होती है। आज इस सूक्त को बदल कर यह कहा जाना चाहिए-जिन्होंने अपने बच्चे को अच्छे संस्कार नहीं दिये या आवेशों पर नियंत्रण करना नहीं सिखाया, वे माता-पिता उसके दुश्मन हैं। यह सूक्त ज्यादा सटीक बैठता है-माता शत्रु पिता वैरी, याभ्यां बालो न संस्कृतः। बच्चे को अच्छी शिक्षा दिला दी, किन्तु बच्चा शराब पीता है, अपराध में लिप्त है, झगड़ा-फसाद करता है तो वह शिक्षा किस काम की होगी ? ऐसा आचरण वह इसलिए करता है कि उसे आवेशों पर नियंत्रण करना नहीं सिखाया गया। शराब पीने की आदत भी आवेश के कारण होती है। एक आवेश जागता है तो व्यक्ति शराब की शरण लेता है। एक आवेश जागता है तो वह अपराध में चला जाता है। एक आवेश जागता है, आदमी क्रोधी और हत्यारा बन जाता है। ये सारे आवेश के परिणाम हैं, जो व्यक्ति से बरे आचरण करवाते हैं। प्रारम्भ से ही उन पर नियंत्रण करना नहीं सिखाया जाता है तो यह किसी भी बच्चे के प्रति न्याय की बात नहीं होती।
एकाग्रता का अभ्यास कराया जाए संस्कार निर्माण का एक सूत्र है-बच्चे को एकाग्रता का अभ्यास कराया जाए। यह काम बचपन से ही शुरू किया जाना चाहिए। यदि बचपन से ही यह अभ्यास कराया जाए तो उसके बहुत अच्छे परिणाम सामने आएंगे। एकाग्रता के अभ्यास के साथ उसे संकल्प शक्ति के विकास का भी अभ्यास
कैसे करें संस्कारों का निर्माण ? / १७५
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