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________________ और दरवाजे का मतलब क्या रहा ? इसलिए आगे-पीछे की ही नहीं, अपितु चारों तरफ की सोच होनी चाहिए। दृष्टिकोण संकुचित होगा तो व्यवहार में उलझनें पैदा होंगी। दृष्टिकोण व्यापक और उदार होगा तो व्यापक हितों की ओर ध्यान जाएगा। संघर्ष का कारण ही संकुचित दृष्टिकोण है। संकुचित वृत्ति परिवार की भी समस्या है, समाज की भी समस्या है। बहुत सीमित दृष्टि से बात सोची जाती है इसीलिए अनेक समस्याएं उलझ जाती हैं। हीन और अहं भाव से मुक्ति संस्कार-निर्माण का तीसरा सूत्र है-हीनभावना और अहंभावना से मुक्त रहने का अभ्यास। महिलाओं में हीनभावना की समस्या ज्यादा देखी जाती है, यह स्वाभाविक भी है। पुरुष को अहंभाव अधिक सताता है तो महिलाओं को हीनभाव ज्यादा सताता है। हीनभाव और अहंभाव से मुक्त होकर संतुलित जीवन कैसे जीया जाए, यह एक प्रश्न है। हीनता के कारण भय पैदा होता है। भय के अनेक कारण हैं। भय के कारणों में ही आदमी बैठा है, इसलिए भय होना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है। हीनता की अनुभूति भी अस्वाभाविक बात नहीं है, किन्तु जिसे संस्कार का निर्माण करना है, उसके लिए यह अभ्यास जरूरी है कि वह कैसे हीनता और अहं की ग्रंथियों से बच सके ? संगठन और अनुशासन के प्रति विश्वास संस्कार निर्माण का चौथा सूत्र है-संगठन और अनुशासन के प्रति विश्वास। इनके प्रति आस्था का निर्माण होना चाहिए। संस्कार निर्माण के लिए अनुशासन का मूल्यांकन बहुत जरूरी है। बहुत सारे सिद्धान्त हैं, जिनमें तर्क की गुंजाइश होती है, किन्तु अनुशासन इस मामले में निरपवाद है। इस संबंध में कोई तर्क नहीं होता। एक सैनिक कभी तर्क नहीं करता। क्या सेना में पढ़े-लिखे नहीं होते ? वहां शिक्षित होते हैं, किन्तु वहां तर्क नहीं चलता। आदेश के सिवाय दूसरा कोई शब्द नहीं मिलता। संगठन भी उतना ही आवश्यक है। इन दोनों के प्रति एक नया दृष्टिकोण बनना चाहिए-अनुशासन में रहना है और अनुशासन का विकास करना है। शक्ति कैसे करें संस्कारों का निर्माण ? / १७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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