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________________ परीक्षा का निष्कर्ष एक राजा ने तीन नौकर रखे । परीक्षा लेने के लिए तीनों को राजा ने अपने पास बुलाया। राजा ने उनसे पूछा - ' बताओ, अगर संयोगवश ऐसा हो जाए कि मेरी दाढ़ी और तुम्हारी दाढ़ी में एक साथ आग लग जाए, तो तुम क्या करोगे ? एक बोला- 'महाराज ! पहले अपनी दाढ़ी की आग बुझाऊंगा' राजा ने कहा- 'तुम स्वार्थी आदमी हो, इसलिए काम के योग्य नहीं हो ।' दूसरे ने कहा - 'महाराज ! मैं आपका सेवक हूं, इसलिए पहले आपकी चिन्ता करूंगा, अपनी नहीं। मैं आपकी दाढ़ी की आग बुझाऊंगा।' राजा ने सोचा - यह चालाक और चापलूस आदमी है । जो कह रहा है, वैसा करेगा नहीं । वह भी नहीं जचा। राजा ने तीसरे से पूछा उसने कहा - 'महाराज ! ऐसी स्थिति में मैं एक हाथ से अपनी दाढ़ी की आग बुझाऊंगा और दूसरे हाथ से आपकी दाढ़ी की आग बुझाऊंगा।' राजा ने उसे अपनी सेवा में नियुक्त कर लिया । यह है स्वार्थ का सीमाकरण । केवल अपना ही स्वार्थ नहीं, दूसरे का भी हित साधना चाहिए। जहां इस तरह का संस्कार निर्मित होता है, हमारे व्यवहार की अनेक समस्याएं सुलझ जाती हैं। परिवारों में कलह क्यों होती है ? इसीलिए कि जहां देवरानियां-जेठानियां अपने-अपने बच्चे को प्राथमिकता देना शुरू करती हैं, वहीं दूसरों पर इसकी तीव्र प्रतिक्रिया शुरू हो जाती है। जहां सामुदायिक जीवन है, वहां अपने स्वार्थ को असीम न बनाएं, उसकी एक सीमा रखें कि इससे आगे नहीं बढ़ना है तो समस्या कभी पैदा नहीं होगी । उदार दृष्टिकोण संस्कार-निर्माण का दूसरा सूत्र है-उदार दृष्टिकोण । दृष्टिकोण हमारा विशाल होना चाहिए। संकीर्ण दृष्टि से देखने वाला अपने आस-पास तक ही देख पायेगा । आदमी को दूर तक की और आगे-पीछे की बात भी जरूर देखनी चाहिए। बहुत वर्ष पहले हम बीदासर की एक गली से होकर जा रहे थे । एक नोहरा देखा - उसकी जर्जर दीवारें ढह चुकी थीं, किन्तु विशाल फाटक और उसमें झूलता बड़ा-सा ताला अभी भी लटक रहा था। आगे तो ताला लगा बड़ा-सा दरवाजा और नोहरे की चारों ओर की दीवारें ध्वस्त । ताले १७२ / विचार को बदलना सीखें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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