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एक बहुत बुरी आदत है । वह दूसरों के साथ बड़ा क्रूर व्यवहार करता है । आप उसे समझाएं। दूसरों के समझाने से तो वह मानेगा नहीं । संन्यासी ने राजा को आश्वासन दे दिया । एक योजना बनाई । संन्यासी राजा के साथ जंगल में गया । राजकुमार और दूसरे सुरक्षा कर्मचारी साथ में थे । सामने एक नीम का पेड़ आया । संन्यासी ने उसकी ओर संकेत कर कहा - 'जाओ, उस पेड़ से दस-बीस पत्तियां तोड़ कर लाओ।' आज्ञा का पालन हुआ । संन्यासी ने पत्तियां हाथ में लीं और राजकुमार को देते हुए कहा'राजकुमार ! इन पत्तियों को तुम खाओ।' राजकुमार ने जैसे ही उन पत्तियों को मुंह में रखकर चबाया, मुंह एकदम कड़वा हो गया । राजकुमार को बहुत बुरा लगा, किन्तु गुरु का आदेश था इसलिए वह कुछ कह नहीं सका । दूसरे दिन फिर वही क्रम योजनाबद्ध ढंग से चला । सब जंगल में उसी स्थान पर बैठे। संन्यासी ने कहा - 'कल यही वह पेड़ था, जिसकी पत्तियों को राजकुमार ने चखा था, आज वह दिखाई नहीं दे रहा है ।
राजकुमार ने कहा - 'गुरुदेव ! उस पेड़ को मैंने कटवा दिया ।' 'क्यों ?
'वह बड़ा कड़वा पेड़ था । ऐसे पेड़ का क्या काम ? इसलिए मैंने कटवा दिया।' संन्यासी ने कहा - 'अच्छा किया तुमने; कड़वी चीज इस दुनिया में रहनी नहीं चाहिए | तुम्हारा व्यवहार भी कड़वा है । प्रजाजनों की दृष्टि में तुम भी कड़वे हो । यदि ऐसा वे भी सोच लें कि कड़वी चीज इस दुनिया में रहनी नहीं चाहिए तो क्या तुम रह पाओगे ?
शक्ति, शांति और सुख
इस प्रेरक बात ने राजकुमार को बिल्कुल बदल दिया । एक बात भी अगर भीतर तक पैठ जाए तो जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन आ सकता है। हम इस बात का गंभीरता से ध्यान दें - हर आदमी शान्ति और सुख का जीवन जीना चाहता है । सुख तब मिलेगा जब शान्ति मिलेगी । शान्ति तब मिलेगी जब शक्ति होगी । सुख, शक्ति और शान्ति - तीनों का संबंध है। सुख की सब सामग्री पास में है, पर मन शान्त नहीं है तो सुख नहीं मिलेगा । मन अशान्त है, उस समय कोई बहुत बढ़िया चीज देकर कहे कि इसे खा लो तो अशान्त व्यक्ति यही कहेगा-मेरा मूड ठीक नहीं है, तुम इसे अपने पास
१६४ / विचार को बदलना सीखें
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