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________________ रखो, मुझे नहीं खाना। वह खायेगा नहीं और खायेगा भी तो उसे स्वाद नहीं आयेगा। एक ओर व्यापार में दस लाख का घाटा लग गया, दूसरी ओर सामने बहुत बड़ा संगीतज्ञ मीठी तान छेड़ता है तो वह उसे बेसुरी लगेगी। मन भीतर में उबल रहा है, बेचैन है तो कोई चीज सुहावनी नहीं लगेगी। शक्ति का स्रोत सुख के लिए मन का शान्त होना अनिवार्य है और मन की शान्ति के लिए शक्ति का होना अनिवार्य है। शान्ति का बहुत बड़ा और गहरा संबंध है हमारी मानसिकता के साथ, हमारी भावना के साथ। शक्ति का स्रोत क्या है ? वह है भावना, कषाय पर नियंत्रण। इसे मनोविज्ञान की भाषा में इमोशनल डेवलपमेंट कहते हैं। इमोशन या भावना का विकास होता है तो आदमी में शक्ति आती है। हमारी शक्ति को क्षीण करने वाला मुख्य तत्त्व है इमोशन या आवेग। जितने आवेश आते हैं, वे शक्ति को क्षीण करते हैं। क्रोध का आवेश आया, शक्ति एकदम कम हो जायेगी। अहंकार अथवा वासना का आवेश बढ़ा, शक्ति क्षीण हो जाएगी। आवेश का काम ही है शक्ति को क्षीण करना। शक्तिशाली होने के लिए अपने आवेगों को नियंत्रण में रखना बहुत जरूरी है। सदाचार और चमत्कार दुनिया में दो बातें चलती हैं सदाचार और चमत्कार। आदमी को चमत्कार पसंद ज्यादा है किन्तु शक्ति उसमें कुछ भी नहीं है। शक्ति मिलती है सदाचार से। एक आदमी बिना नौका के नंगे पैर पानी पर चला, यह चमत्कार है। जहाज या नौका पानी में चले तो कोई चमत्कार नहीं है, पर एक आदमी पानी पर भूमि की तरह चले तो बहुत बड़ा चमत्कार है। जो भी देखेगा, हैरत में पड़ जायेगा। पर देखने वालों को इससे मिला क्या ? उपलब्धि क्या हुई ? कुछ भी नहीं। पक्षी और यान आकाश में उड़ते हैं, यह कोई चमत्कार नहीं है पर आदमी बिना किसी सहारे के आकाश में उड़े तो बहुत बड़ा चमत्कार है। ऐसे चमत्कार भी हो सकते हैं किन्तु इन चमत्कारों से कुछ मिलने वाला नहीं है। शक्ति अर्जित करनी है तो शान्ति और शक्ति के साथ जीयें । १६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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