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चढ़ाता है तो वह दो किवाड़ बनाकर सीधा नहीं चढ़ाता। किवाड़ बनने के बाद काट-छांट करनी पड़ती है। कभी इस खिड़की को काटा जाता है, कभी उस खिड़की को काटा जाता है। कभी नीचे से, कभी ऊपर से और कभी पीछे से काटता है, तब कहीं खिड़कियां सही होती हैं। काट-छांट करना बहुत आवश्यक होता है, सामंजस्य बिठाना होता है। कोई बात एक की माननी होती है तो कोई बात दूसरे की माननी होती है। हर बात में काट-छांट और सामंजस्य बिठाना होता है। ऐसा करके ही व्यक्ति परिवार और समुदाय के साथ चल सकता है।
सहिष्णुता सामंजस्य, समझौता और व्यवस्था-इन तीनों से भी अधिक महत्त्वपूर्ण सूत्र है-सहिष्णुता। यह अहिंसा, पारस्परिक सौहार्द और शान्त सहवास का आधार बनता है। समस्या यह है कि आज आदमी एक-दूसरे को सहन करना नहीं जानता। उसका दिमाग ही कुछ ऐसा बना हुआ है कि सहन करना बहुत कम जानता है। बड़ों की बात छोड़ दें, दो-चार वर्ष का छोटा बच्चा भी सहन करना नहीं जानता। उसके भी मन के प्रतिकूल बात होती है तो वह इतना उबल पड़ता है कि शान्ति भंग हो जाती है। एक-दूसरे को सहन किये बिना दो व्यक्ति साथ कैसे रह सकते हैं ? जब तक सहिष्णुता का विकास नहीं होता, तब तक शान्त सहवास की कल्पना भी नहीं की जा सकती। एक-दूसरे की कमजोरी और असमर्थता को सहन करना, अल्पज्ञता और मानसिक अवस्था को सहन करना, दूसरे की कठिनाई और बीमारी को सहन करना होता व्यक्ति जब इन सबको सहन करता है, तब परिवार में शान्ति रह सकती है। सहन बिल्कुल नहीं करता है तो अशान्ति ही अशान्ति।
अर्थ सहिष्णुता का आज सहिष्णुता का अर्थ गलत समझ लिया गया। सहिष्णुता का अर्थ न कायरता है, न कमजोरी और न दब्बूपन । सहिष्णुता महान् शक्ति है। बहुत शक्तिशाली आदमी ही सहिष्णु हो सकता है। कमजोर आदमी कभी सहिष्णु नहीं हो सकता। कमजोर सहन कर ही नहीं सकता। सहन करने का मतलब
१५४ / विचार को बदलना सीखें
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