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________________ दो भाइयों का आपसी प्रेम भी वैसे ही फट जाता है, जैसे नींबू की कुछ बूंदों से गर्म दूध । एक भाई ने सोचा - इनके इतनी लड़कियां हैं, शादी में इतना रुपया खर्च हो गया । मेरे तो कोई लड़की है नहीं, मैंने तो कुछ खर्च ही नहीं किया। जो खर्च हुआ है, जो कर्ज सिर पर चढ़ा है, सब इसके सिर पर चढ़ा है। इसके पास कुछ जमा है नहीं, सब कर्जा ही कर्जा है।' यह चिंतन दो सहोदर भाइयों के भ्रातृत्व संबंधों में दरार पैदा कर देता है । अव्यवस्था का परिणाम दिल्ली का एक व्यक्ति राजनीति में बहुत भाग लेता था । एक दिन उसने कहा - 'महाराज ! मैं तो बिल्कुल मारा गया ।' हमने पूछा- 'क्या हुआ ? वह भाई रोने लगा । बहुत मुश्किल से आंसू पौंछते हुए बोला- हम चार भाई हैं। हमारी कितनी बड़ी दुकान है। बहुत बड़ा व्यवसाय है । मैं तो राजनीति में रहा। दूसरे भाई दुकान में बैठते रहे। आज भाइयों ने कहा - 'तुम्हारे सिर पर इतना कर्जा है, तुम्हारे हिस्से में कुछ भी नहीं है वे कह रहे हैं - तुम इस घर से निकल जाओ ।' T हम लोग भी कल्पना नहीं कर सके कि इतना अच्छा आदमी इस प्रकार कैसे हो गया ? किन्तु ऐसा होता है और इसलिए होता है कि सम्यक् व्यवस्था नहीं है। जहां ठीक व्यवस्था नहीं होती, वहां ऐसी ही स्थिति पैदा होती है समझौता दूसरी बात है - समझौता । व्यक्ति समझौता करना नहीं जानता है तो छोटी-सी घटना की गांठ बन जाती है। जब तक गांठ खुलती नहीं, समस्या सुलझती नहीं है। समझौते के बिना दुनिया में कभी काम नहीं चलता । महायुद्ध होता है, बड़ी-बड़ी लड़ाइयां होती हैं, तो भी समझौता और संधि होती है । सामान्य आदमी भी ऐसी बात पकड़कर बैठ जाता है और इस भाषा में सोचता है - मैं तो ऐसा करना ही नहीं चाहता, सुनना ही नहीं चाहता। जहां अपनी बात का इतना आग्रह होता है, समझौता करने की मनोवृत्ति नहीं होती, वहां परस्पर लड़ाइयां चलती हैं । सामंजस्य और समन्वय करना जरूरी है। एक बढ़ई भी जब अपना काम करता है, कमरे में खिड़कियां Jain Education International पारिवारिक जीवन और शान्त सहवास / १५३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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