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यदि सामंजस्य नहीं होता है तो छोटी बात भी लड़ाई का कारण बन जाती है।
क्यों होते हैं संघर्ष ? मान लीजिए रोटी खाने के लिए व्यंजन बनाना है। एक व्यक्ति कहता है-मुझे तो करेला बहुत अच्छा लगता है। दूसरा कहता है-मुझे करेला बहुत कड़वा लगता है। मैं नहीं खाऊंगा। इस छोटी-सी बात को लेकर भी बहुत झंझट खड़ा हो जाता है। यह रुचि-भेद जनित संघर्ष है। संघर्ष काल्पनिक भी होता है। पति-पत्नी के बीच झगड़ा हो गया। पत्नी ने कहा- 'मैं लड़के को डॉक्टर बनाऊंगी। पति ने कहा-नहीं, मैं उसे वकील बनाऊंगा। लड़ाई इतनी तेज हो गयी कि पड़ोसी इकट्ठे हो गए। एक समझदार व्यक्ति ने कहा- 'अरे, लड़ क्यों रहे हो ? पहले लड़के का मन भी तो जान लो।' पत्नी बोली-'लड़का तो अभी पैदा ही नहीं हुआ है।
इस प्रकार अहेतुक लड़ाइयां, जिनका कोई आधार नहीं, परिवारों में चलती हैं। इसलिए चलती हैं कि सामंजस्य बिठाना नहीं जानते, समझौता करना नहीं जानते और व्यवस्था को नहीं जानते। हम इन तीन सूत्रों पर ध्यान दें-सामंजस्य, समझौता और व्यवस्था। अगर इन तीनों सूत्रों पर ध्यान दें तो लड़ाइयां बंद हो जाएंगी। हमने देखा-दो भाइयों में इतना परस्पर प्रेम था कि लोग कहते-'ये तो राम-लक्ष्मण हैं।' किन्तु जब धन का प्रश्न आया, प्रेम टूट गया और ऐसा टूटा कि राम-लक्ष्मण का प्रेम कहीं चला गया। आपस में इतना वैमनस्य हो गया, जितना राम और रावण में भी नहीं रहा होगा।
व्यवस्था व्यवस्था के अभाव में ऐसी स्थितियां बनती हैं। जहां व्यवस्था नहीं है, वहां संघर्ष का होना अनिवार्य है। अव्यवस्था में लड़ाई की संभावना निरंतर बनी रहती है। चाहे परिवार को देखें, चाहे सभा, संस्था या संगठन को देखें और चाहे किसी धर्म-संप्रदाय को देखें। जहां व्यवस्था का अभाव है, वहां लड़ाई-झगड़े का अवतरण निश्चित है। जिस परिवार का मुखिया समझदार होगा, वह व्यवस्था पर सबसे पहले ध्यान देगा। जहां व्यवस्था नहीं, वहां
१५२ / विचार को बदलना सीखें
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