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मैं-यह हिंसा का विकल्प है। पहले साम्यवाद का यह नारा था'साम्यवाद और लोकतंत्रवाद-दोनों एक साथ नहीं रह सकते । या साम्यवाद रहेगा या लोकतंत्रवाद अथवा पूंजीवाद रहेगा। किन्तु आज यह नारा बदल गया।
सहावस्थान प्राचीन कहानी है-एक राजा की कन्या ने अपने पिता से कहा-'या तो रेखला रहेगा, या मैं रहूंगी। हम दोनों एक साथ नहीं जी सकते।' राजा को उस निरपराध युवक को मारने का आदेश देना पड़ा। यह प्रयोग बहुत चलता है-या तुम या मैं। हम दोनों एक साथ नहीं रह सकते। यह हिंसा का प्रयोग है। जहां अहिंसा का प्रयोग होगा, वहां भाषा बदल जायेगी, स्वर बदल जायेगा। व्यक्ति कहेगा-तुम भी रहो, मैं भी रहूं, हम दोनों साथ रह सकते हैं, कोई बाधा नहीं है। अनेकान्त में इस सूत्र का बहुत विकास हुआ, जिसे कहा जा सकता है सहावस्थान। एक होता है सहावस्थान, दूसरा होता है सहानवस्थान। आग और पानी दोनों एक साथ नहीं रह सकते। जहां आग है, वहां पानी नहीं और जहां पानी है, वहां आग नहीं। इसे कहा जा सकता है-सहानवस्थान किन्तु अनेकान्त ने इस बात को नहीं स्वीकारा। अनेकान्त दर्शन के अनुसार आग और पानी भी एक साथ रह सकते हैं। ऊष्मा और ठंडक दोनों सापेक्ष हैं, दोनों एक साथ रह सकते हैं। प्रकाश और अंधकार-दोनों एक साथ रह सकते हैं।
एक आदमी बैठा है। दिन में बादल छा गये। दो बजे का समय है। कमरे में भी अंधेरा छा गया। किसी ने कहा- 'लो, पुस्तक पढ़ो।' उसने कहा- 'नहीं, अभी तो अंधेरा है। मैं नहीं पढ़ सकता। उसी समय उसे पानी का गिलास देते हुए किसी ने कहा- 'पानी पियो।' उसने गिलास हाथ में लिया और पानी पी गया। पूछा-'पानी कैसे पी लिया ? वह बोला-'पानी के लिए अंधेरा नहीं है, सूक्ष्म अक्षर पढ़ने के लिए अंधेरा है। यदि मोटा अक्षर पढ़ने के लिए दिया जाए तो उसके लिए भी अंधेरा नहीं है।'
१५० / विचार को बदलना सीखें
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