________________
पारिवारिक जीवन और शान्त सहवास
यदि दुनिया में आदमी अकेला होता तो कोई लड़ाई-झगड़ा और संघर्ष नहीं होता, अशान्ति नहीं होती। किन्तु ऐसा नहीं है, अनेक लोग हैं। अनेक में पांच अरब भी हो सकते हैं, दस अरब भी हो सकते हैं। एक से दो होने का मतलब ही है द्वन्द्व का पैदा होना। संस्कृत कोश में द्वन्द्व का एक अर्थ है-जोड़ा। द्वन्द्व का दूसरा अर्थ है लड़ाई। दो और लड़ाई-ये दोनों पर्यायवाची बन गये। जहां दो हैं, वहां लड़ाई होना अनिवार्य मान लिया गया। जहां एक से दो बना, वहां साथ-साथ लड़ाई ने भी जन्म ले लिया। जहां दो हुए, वहां रुचि भिन्न हो जायेगी, विचार भिन्न हो जायेगा। रुचि का भेद, विचार का भेद, चिंतन का भेद और क्रिया का भेद। इतना विवेक प्रत्येक आदमी में नहीं होता कि वह विचार भेद को मनभेद न बनाए। ये भेद मनभेद के कारण बनते हैं और लड़ाई शुरू हो जाती है। दो का मतलब है संघर्ष, टकराहट। दो हथेलियां मिलीं, रगड़ हुई, शब्द पैदा हो गया।
अहिंसा का विकास दो होकर रहना संघर्ष में जीना है और यह बड़ी समस्या होती है। उपाय खोजा गया-दो में रहें, अनेक में रहें किन्तु एक होकर रहें, जिससे संघर्षण न हो, लड़ाई और अशान्ति न हो। प्रश्न है-यह कैसे संभव हो सकता है ? इसका एक उपाय है धर्म। जिस व्यक्ति ने धर्म को समझा है, वह अनेक में भी एक बन कर रह सकता है, समूह और समुदाय में रहकर शान्तिपूर्ण जीवन जी सकता है। इसके लिए अहिंसा का प्रयोग किया गया। यदि अहिंसा का प्रयोग नहीं होता तो समाज नहीं बनता, दो आदमी समाज में एक साथ नहीं रह सकते। समाज बना अहिंसा के आधार पर। उसका सूत्र है-साथ-साथ रहो, तुम भी रहो और मैं भी रहूं। या तुम, या
पारिवारिक जीवन और शान्त सहवास / १४६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org