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________________ विकृत चेतना और अपराध अपराध की आन्तरिक प्रेरणा है-लोभ, राग और द्वेष । उसकी बाह्य प्रेरणा है-अर्थ का अर्जन और संग्रह तथा सत्ता पर अपना अधिकार स्थापित करना। बाहरी प्रेरणा पर अंकुश लगाने की चेष्टा होती रहती है, किन्तु उसकी आन्तरिक प्रेरणा पर्दे के पीछे रह जाती है। यह सचाई किसी संप्रदाय या मतवाद की सचाई नहीं है, यह विशुद्ध आध्यात्मिक सत्य है। इस ओर ध्यान देकर ही अपराध की मात्रा को कम किया जा सकता है। ___ अपराध-मुक्ति का सबसे प्रभावी उपाय है-चेतना की विशुद्धि। एक ओर अर्थ का असीम आकर्षण, दूसरी ओर मादक वस्तुओं के सेवन का बढ़ता हुआ आकर्षण, यह वर्तमान युग की मनोदशा का सही चित्रण हो सकता है। विकृत चेतना और अपराध के व्याप्ति संबंध को नकारना कोई बुद्धिमानी नहीं है। बुद्धिमानी यह होगी कि शिक्षा के व्यापक स्वरूप पर विचार करें, निर्माण की प्रक्रिया को गतिशील बनाएं। संदर्भ शिक्षा का मनोरचना के बिना समाज रचना का स्वप्न कभी सफल नहीं हो सकता। क्या शिक्षा में मनोरचना के तत्त्व हैं ? आर्थिक प्रलोभन और मादक वस्तुओं से बचने की मनोवृत्ति के उपायों का निर्देश है ? सुविधावाद और बड़प्पन के मानदण्ड शिखर को छू रहे हों और आर्थिक अपराध न हों, यह कब संभव है ? मादक वस्तुओं का बाजार उन्मुक्त हो और चारित्रिक अपराध न हों, यह कब संभव है ? आश्चर्य है-शिक्षा के पवित्र क्षेत्र में चेतना के रूपान्तरण की कल्पना करें, उसी क्षेत्र में चेतना को विकृत बनाने वाली मादक वस्तुओं का संसर्ग मिले। समस्या की गंभीरता है। अपेक्षित है गंभीर चिंतन। थाली के जल में नौका चलाने की बात न सोचें। मादक वस्तु और अपराध मादक वस्तुओं का सेवन स्वयं एक अपराध है और वह अपराध, जो अपराधी प्रवृत्तियों को जन्म देता है। मादक वस्तुओं के प्रयोग की अभीप्सा का हेतु है-गरीबी और तनाव। तनाव की बीमारी गरीब और अमीर-दोनों अपराध निरोध का मंत्र : चेतना का परिष्कार / १४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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