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________________ अपराध निरोध का मंत्र : चेतना का परिष्कार जैन भाषा में यौगलिक युग और वैदिक भाषा में मनु का युग समाज-रचना का आदि युग था। समाज की प्रतिष्ठा इन शब्दों में व्यक्त की गयी- 'कोई भिखारी नहीं है, कोई दाता नहीं है। कोई दस्यु नहीं है, कोई अपराधी नहीं है। सब अपने-अपने स्वत्व में संतुष्ट हैं।' उस समाज से वर्तमान समाज की तुलना नहीं की जा सकती। असंतोष की परिणति है अपराध आज हर व्यक्ति के मन में असंतोष है। उसकी चरम परिणति है अपराध । इन दो शताब्दियों में अपराधमुक्त समाज की रचना के लिए अनेक प्रयत्न किये गये। पश्चिमी चिंतकों ने समाजवाद (ब्रिटेन) साम्यवाद (सोवियत संघ) श्रमिक संघवाद (फ्रांस) जैसे नये शब्द और अभिनव सिद्धान्त दिये। भारतीय चिंतकों ने अतिमानववाद (अरविन्द) नवमानववाद (एम. एन. राय) सर्वोदय. (गांधी) आदर्श समाज (डॉ. राममनोहर लोहिया) की प्ररूपणा दी। इन वादों और प्रयत्नों की छत्रछाया में स्वस्थ समाज संरचना की कल्पना की। अणुव्रत अनुशास्ता श्री तुलसी ने अणुव्रत के माध्यम से स्वस्थ समाज का स्वप्न संजोया। किन्तु कोई भी प्रयत्न अपनी मंजिल तक पहुंचने में सफल नहीं हुआ। इस विषय पर गंभीरतापूर्वक विमर्श करना आवश्यक है। बीज है चेतना में अपराध निरोध के लिए हमारा ध्यान समाज की सुव्यवस्था, कानून और दंडसंहिता पर केन्द्रित है। कुछ आगे बढ़ें तो संस्कार-निर्माण की शिक्षा तक पहुंच जाते हैं। मूल कारण तक पहुंचने की मनोवृत्ति और प्रवृत्ति-दोनों अपराध निरोध का मंत्र : चेतना का परिष्कार / १४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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