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________________ इन सबके लिए हम स्वयं उत्तरदायी हैं, दूसरा कोई नहीं। जब भी कोई घटना घटती है, हमारा ध्यान तत्काल दूसरे पर जाता है, व्यक्ति सोचता है-उसने मेरा ऐसा कर दिया। मेरा काम बिगाड़ दिया, नुकसान कर दिया। वह यह नहीं सोचता कि मैंने स्वयं भी तो कुछ किया होगा, कहीं वह मेरे द्वारा कृत की प्रतिक्रिया तो नहीं है ? यह एक निश्चित तथ्य है-जो कुछ हम करते हैं, उसकी प्रतिक्रिया जरूर होती है। संपन्नता से शांति नहीं मिलती इस दुनिया में चेतना और ज्ञान से बढ़कर कोई तत्त्व नहीं है। चेतना कहां है ? वह हमारे भीतर है या आकाश में कहीं लटक रही है ? आज जो कुछ भी संसाधन के रूप में है, वह सब इसी चेतना का परिणाम है। सुख या आनन्द कहां है ? क्या सुख या आनन्द की कोई दुकान है, जहां से उसे खरीदा या बेचा जा सके ? यदि उसकी कोई दुकान होती तो बड़े से बड़े धनपति उसकी खोज में दर-दर नहीं भटकते। दिल्ली प्रवास का प्रसंग है। एक अमेरिकन भाई पूज्य गुरुदेव के पास आया, बोला-'महाराज ! मझे आप शांति की बात बताएं। मुझे तो शांति चाहिए।' गुरुदेव ने कहा-'तुम अमेरिका के निवासी हो। वह संपन्न और शक्तिशाली देश है, वहां किसी चीज का अभाव नहीं है। वह बहुत सारी चीजें दुनिया के अन्य देशों को बांटता है। यह शांति तुम्हें वहां क्यों नहीं मिली ? वह बोला-'महाराज ! डॉलर, पौंड या रूबल में मिलती तो हम उसके लिए यहां क्यों भटकते ? शांति संपन्नता से नहीं मिलती, यह हम लोगों को अच्छी तरह मालूम हो गया है। भारत एक गरीब देश है। यदि वह सम्पन्न होता तो उसे भी पता चल जाता कि शांति और सुख धन से नहीं पाया जा सकता।' एक आदमी को हिमालय की किसी गुफा में या एवरेस्ट की चोटी पर बिठा दिया जाए तो उसे वहां शांत एकान्त वातावरण तथा शीतलता मिलेगी, किन्तु मन में एक पीड़ा रहेगी, धन-वैभव और प्रियजनों के बिछोह की। घर के भीतर एयरकंडीशन में बैठे हुए आदमी को बाहरी ताप तो नहीं लगेगा, किन्त भीतर एक दावानल सुलगता हुआ महसूस होगा। शांति और सुख हमारे भीतर है तो अशांति और दुःख भी हमारे भीतर है। अब यह हम पर निर्भर है कि हम शांति और सुख निकालें या अशांति और दुःख। हिमकुण्ड और अग्निकुण्ड दोनों आदमी में / १४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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