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________________ राजकर्मचारी सोने के पात्र हाथ में लिये प्रतीक्षा करने लगे-वह पेड़ कब कुछ दे और वे उसे राजा के समक्ष हाजिर करें। थोड़ी देर की प्रतीक्षा के बाद गाय ने मूत्र किया। सावधानी और शीघ्रता से कर्मचारियों ने उसे पात्र में संभाल लिया। वे उसे लेकर राजा के पास पहुंचे। राजा ने कुतूहल से उसे देखा और कहा- 'आज तो इस पेड़ ने बिल्कुल नयी चीज दी है। उस व्यापारी ने ठीक ही कहा था कि वह हमेशा कुछ न कुछ नयी चीज देता है।' राजा ने जैसे ही पात्र मुंह से लगाया, थोड़ा-सा पीया, शीघ्रता से उसे उगल दिया। राजा के मन में संदेह हुआ, किन्तु यह सोच कर उसे अभिव्यक्त नहीं किया-जो हमेशा अच्छी चीज देता है, भूल से एक बार खराब भी दे सकता है। कुछ समय बाद गाय ने गोबर किया। कर्मचारी उसे भी पात्र में लेकर राजा के सामने हाजिर हुए। राजा के लिए वह भी नयी चीज थी। जैसे ही थाल में रखी उस गरम वस्तु को राजा ने चखा, घृणा और दुर्गंध से उसे थूक दिया। राजा आवेश से भर उठा। उसने कहा- 'व्यापारी ने मेरे साथ धोखाधड़ी की है। उस व्यापारी को गिरफ्तार करो।' आरक्षक दौड़े। व्यापारी को पकड़ कर राजा के पास लाए। राजा ने कहा- 'मैंने तुम्हें राजकीय संरक्षण दिया और तुमने मेरे साथ धोखा किया। असली के बजाय नकली पेड़ दिया।' उसने कहा- 'महाराज ! मैंने आपके साथ कोई धोखा नहीं किया है। मैंने आपको जो चीज दी है, वह असली है। किन्तु आपके कर्मचारी उससे अच्छी चीजें लेना नहीं जानते। इसीलिए आपको वैसी चीजें मिली हैं। चलिए, मैं आपको दिखाता हूं।' व्यापारी ने राजा के सामने गाय को दुहा, स्वर्णपात्र में सफेद पेय राजा को पीने के लिए दिया। दूध पीते ही राजा के संदेह का निवर्तन हो गया। व्यापारी ने कहा-'महाराज ! इसी चीज से वे बहुत सारी वस्तुएं बनती हैं, जिन्हें मैं आपकी सेवा में पहुंचाता था।' दुहना जानें हम अपनी आत्मा के भीतर झांकें। उसमें दूध भी है, गो-मूत्र तथा गोबर भी है। कोई दुहना जाने तो दूध मिलेगा। दुहना न जाने तो गोबर और मूत्र मिलेगा। सब कुछ है हमारे भीतर। अच्छाई भी है, बुराई भी है और १४० / विचार को बदलना सीखें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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