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होगी तब तक हम प्रकृति के साथ जीने की बात संगोष्ठियों और संभाषणों में भले ही करें, यथार्थ के धरातल को वह प्रभावित नहीं कर पाएगी। इन्द्रिय-चेतना के स्तर से ऊपर उठकर चिन्तन करने का अर्थ होगा-सुख की अवधारणा में परिवर्तन । अध्यात्म के आचार्यों ने कहा था-इन्द्रिय जन्य सुख वास्तविक सुख नहीं है। जिसका परिणाम सुखद नहीं होता, वह सुख वस्तुतः दुःख ही होता है। इस प्रसंग में सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक डेविड बूम के विचार बहुत मननीय हैं
Indeed, many scientists have noted that the validity of their sudden flashes of insight tends to be in inverse proportion to the amount of pleasure to which they give rise (and therefore to the intensity of the conviction that they are ture)......so it may seem in this way that there is often a true perception at a deeper level, that can not be translated into thinking. So that what is perceived is distorted and lost. ___'सत्य के अंतर्दर्शन में जो सुख की अनुभूति होती है, वह बाह्य पदार्थों के अनुभव से होने वाले सुख से सर्वथा भिन्न है। अनुभूति के गहन स्तर पर जो सत्य का दर्शन होता है, उसका बुद्धि के स्तर पर अनुवाद नहीं किया जा सकता। अनुवाद करने का प्रयत्न करेंगे तो वह विकृत और तिरोहित हो जाएगा।
मध्यम मार्ग प्रकृति के साथ होने वाले व्यवहार में सब वैज्ञानिक और विचारक एक मत नहीं हैं। कुछ विचारकों का मत है-प्रकृति के प्रकोप को शांत करने की विधियां हमारे पास हैं इसलिए पर्यावरण प्रदूषण की विभीषिका विकास की यात्रा में बाधा नहीं बन सकती।
कुछ विचारकों का मत है-प्रकृति के नियमों की हमें पूरी जानकारी नहीं है इसलिए उसके साथ अधिक छेड़छाड़ करना मानवीय एवं प्राणिमात्र के अस्तित्व के लिए खतरनाक है।
1. David Bohm unpublished material—"The Movement of the mind
beyond thinking and feeling.
प्रकृति के साथ जीएं । १३५
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