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समस्याएं सुलझ गयीं। बहुत सारी समस्याएं अनियंत्रित सवेगों के कारण उलझ रही हैं। प्रेक्षाध्यान में दो बातों पर विशेष ध्यान दिया गया-अन्तर्दृष्टि जागनी चाहिए, संवेगों पर नियंत्रण, ब्रेक लगाने की शक्ति जागनी चाहिए । मैं इस संदर्भ में एक छोटी-सी कहानी कहा करता हूं ।
कार आ रही थी । चौराहे पर खड़े सिपाही ने रुकने का संकेत किया । ड्राइवर ने निकट आकर पूछा- 'क्यों, आप रोक क्यों रहे हैं ? सिपाही ने कहा - 'लाइट नहीं है तुम्हारी कार में ।' ड्राइवर बोला- 'इसमें ब्रेक भी नहीं है । तुम सामने से हट जाओ, अन्यथा मारे जाओगे ।'
वह कार बहुत खतरनाक होती है, जिसमें लाइट नहीं होती और जिसमें ब्रेक नहीं होता । वह आदमी भी क्या कम खतरनाक है, जिसका इंट्यूशन पावर कमजोर है और जिसमें अपने इमोशन्स पर कंट्रोल करने की क्षमता नहीं है ?
अनासक्ति
जीवनशैली का तीसरा सूत्र है - अनासक्ति । गीता में अनासक्ति का बहुत सुन्दर सूत्र किया गया है। जैन शास्त्रों में उमास्वाति ने मूर्च्छा पर बहुत सटीक लिखा है। धन सब कुछ नहीं है, यह धारणा व्यापक होनी चाहिए । आज तो समाज में यह धारणा ही बलवती हो चुकी है कि धन ही सब कुछ है । लोगों की दृष्टि में इसका स्थान परमात्मा के बराबर है, किन्तु किसी-किसी के लिए तो वह उससे भी बढ़कर है। उनका हर काम कमाई के लिए है । जीवन का उद्देश्य ही कमाना मान लिया है लोगों ने । यह वृत्ति भी बदलनी चाहिए ।
जीवनशैली के इन तीन सूत्रों पर अध्यात्म और विज्ञान के लोग गंभीरता से चिंतन करेंगे। आईंस्टीन ने कहा था- 'अध्यात्म के बिना विज्ञान और विज्ञान के बिना अध्यात्म क्रमशः लंगड़ा और अंधा है । उस महाविज्ञानी का यह कथन पूर्णतः सत्य है ।'
१३० / विचार को बदलना सीखें
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