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हमारा पेट फूलना चाहिए, श्वास छोड़ते समय पेट सिकुड़ना चाहिए।' ध्यान के कुछ विशिष्ट साधकों ने कहा-'नहीं, श्वास लेते समय पेट नहीं, सीना या छाती फूलनी चाहिए।' वहां उपस्थित डॉक्टरों ने कहा- 'महाराज, आप ठीक कह रहे हैं। श्वास लेते समय डायाफ्राम सरकेगा और जब डायाफ्राम नीचे जायेगा तो पेट फूलेगा। संचालक है प्राणशक्ति आज शरीरविज्ञान के द्वारा शरीर के बहुत सारे रहस्यों को समझने का अवसर मिला है। जब तक शरीर के रहस्यों को नहीं समझा जाता, नाड़ीतंत्र और ग्रंथितंत्र के रहस्यों को नहीं जाना जाता, तब तक शायद योग और अध्यात्म को नहीं समझा जा सकता। शरीरविज्ञान और शरीरक्रिया विज्ञान ने अवयवों पर बहुत काम किया है। आज की शल्य चिकित्सा को एक दैविक क्रिया जैसा कहा जा सकता है। शरीरविज्ञान के साथ प्राणशक्ति की बात और जुड़नी चाहिए। हमारे शरीर का सारा संचालन प्राणशक्ति के द्वारा ही होता है। हम प्राण को उपेक्षित करके चलेंगे तो आगे नहीं बढ़ा जा सकेगा। सब कुछ निर्भर ही प्राणशक्ति पर है। श्वास अलग है, प्राण अलग है। आयुर्वेद में इसकी पांच कोटियां बताई गयी हैं-प्राण, अपान, उदान, समान और व्यान। इस प्राणशक्ति का विकास अध्यात्म और विज्ञान-दोनों के योग से हो तो व्यक्ति और समाज को स्वस्थ बनाने में बहुत सफलता मिलेगी। जैविक घड़ी और स्वरोदय प्रेक्षाध्यान के शिविर में महाराष्ट्र की महिला ने भाग लिया। वह चौबीस घंटे भयभीत रहा करती थी। सोते समय डर और जागते समय भी डर। बहुत चिकित्सा के बाद भी उसे कोई लाभ नहीं हुआ था। हमने मूल बात को पकड़ा। प्रेक्षाध्यान में नाभि के स्थान को तैजसकेन्द्र कहा जाता है। जिसके नाभि के स्थान पर प्राणऊर्जा की अत्यधिक कमी होती है, उसे भय बहुत लगता है। किस अवयव में किस समय प्राणऊर्जा काम करती है, इस पर स्वरोदय के आचार्यों ने बहुत काम किया था। आज के कुछ शरीर-विज्ञानी भी इस पर काम कर रहे हैं। जिन्होंने बायोलोजिकल क्लाक या जैविक
. १२८ / विचार को बदलना सीखें
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