________________
आयाम है। मौलिक मनोवृत्तियों (इंस्टिवट) और संवेग के विश्लेषण ने आंतरिक चेतना के अनेक आवरण दूर किए हैं। जीन के सिद्धान्त ने जीवन की वृत्तियों को समझने का अवसर दिया है। इनके सन्दर्भ में कर्मवाद का तुलनात्मक अध्ययन स्वस्थ समाज की रचना में काफी उपयोगी हो सकता है।
सामाजिक और आर्थिक विषमता का मूल स्रोत है संवेगों का असंतुलन। अहंकार और ममकार ये दोनों संवेग विषमता के जनक हैं। क्रोध, माया. लोभ, भय, घृणा, काम-वासना आदि का अतिरेक विषमता के पोषक तत्त्व हैं। इस संवेग-समूह से प्रभावित जीवनशैली स्वस्थ समाज अथवा अहिंसक समाज की रचना कभी नहीं कर सकती। यदि समाजवादी और साम्यवादी शासन-पद्धति के साथ संवेग-संतुलन के प्रयोग जुड़े होते तो स्वस्थ समाज की रचना को दिशा मिल जाती। संवेग संतुलन का प्रयोग संयम और समता के सिद्धान्त संवेग संतुलन की साधना किए बिना जीवनव्यापी नहीं हो सकते। अध्यात्म के क्षेत्र में संवेग नियंत्रण के अनेक प्रयोग बतलाए गए हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि संवेग नियंत्रण के प्रयोगों का समुच्चय ही अध्यात्म है। संवेग नियंत्रण के लिए प्रेक्षाध्यान के प्रयोग बहुत सफल हुए हैं। उनके आधारभूत सूत्र हैं
१. शारीरिक परिवर्तन २. विरोधी संवेग का जागरण ३. यथार्थ दृष्टिकोण ४. आवेश के कारणों का निवारण । मनुष्य के शरीर में दो नियंत्रण प्रणालियां हैं१. रासायनिक नियंत्रण प्रणाली २. विद्युत् नियंत्रण प्रणाली।
रासायनिक नियंत्रण प्रणाली स्वतः चालित है। अंतःस्रावी ग्रन्थियां उसे संचालित करती हैं। अंतःस्रावी ग्रन्थियों का नियमन लिम्बिक सिस्टम के हाइपोथेलेमस से होता है। हम प्रेक्षाध्यान के प्रयोगों द्वारा हाइपोथेलेमस या भावधारा को प्रभावित कर सकें तो संवेग नियंत्रण की साधना आगे
जीवनशैली और स्वास्थ्य । १२१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org