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________________ वर्तमान जीवनशैली और समाज बीसवीं शताब्दी संहारक अस्त्रों के निर्माण, जातीय एवं साम्प्रदायिक संघर्ष, अनावश्यक हिंसा, आतंकवाद, आर्थिक अपराध और पर्यावरण प्रदूषण के लिए प्रसिद्ध रही है। आज प्रत्येक चिन्तनशील व्यक्ति का मन आन्दोलित है कि उक्त समस्याओं का समाधान कैसे किया जाए ?नए समाज अथवा स्वस्थ समाज की संरचना कैसे संभव बने ? इक्कीसवीं शताब्दी सामने है। अस्वस्थ समाज के साथ उसमें प्रवेश करना शायद किसी को इष्ट नहीं है। अणुव्रतअनुशास्ता श्री तुलसी ने ईस्वी सन् १६४५ में स्वस्थ समाज रचना का संकल्प प्रस्तुत किया था। उस संकल्प का जीवन-दर्शन है अणुव्रत। अणुव्रत का मूल तत्त्व है संयम । स्वस्थ व्यक्ति और स्वस्थ समाज रचना के लिए जिस जीवनशैली की जरूरत है, उसे हम एक शब्द में परिभाषित कर सकते हैं, वह है संयमाभिमुख जीवनशैली। आहार का संयम नहीं है फलतः शारीरिक, मानसिक और भावात्मक स्वास्थ्य बिगड़ रहा है, हिंसा बढ़ रही है। हिंसा और साम्प्रदायिक मनोवृत्ति के साथ शारीरिक क्रिया का गहरा संबंध है। यह सचाई वैज्ञानिक गवेषणाएं बता रही हैं। शारीरिक प्रवृत्तियों का संयम किए बिना क्या स्वस्थ समाज रचना का सपना साकार हो सकता है ? वाणी का असंयम भी संघर्ष के लिए कम जिम्मेवार नहीं है। अतः स्वस्थ व्यक्ति और स्वस्थ समाज रचना के लिए अपेक्षित जीवनशैली का आधार सूत्र है संयम। इन्द्रिय का असंयम भी आर्थिक अपराध तथा अन्य अपराधों के लिए उत्तरदायी है। अध्यात्म ने हजारों-हजारों वर्ष पहले घोषणा की थी-'इन्द्रिय चेतना को कभी तृप्त नहीं किया जा सकता।' अतप्ति और आसक्ति का चक्र अनेक जटिल समस्याओं का निर्माण कर रहा है। समता स्वस्थ समाज रचना की जीवनशैली का दूसरा आधार है समता। समता का अर्थ है संवेग संतुलन। गहन मनोविज्ञान (डेफ्ट साइकोलॉजी) और व्यवहार मनोविज्ञान (विहेवियर साइकोलॉजी) ने मानवीय चेतना के अध्ययन का प्रबल प्रयत्न किया है। यह आत्मा या चेतना के अध्ययन का आधुनिक १२० / विचार को बदलना सीखें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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