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अनेकांत दृष्टि की समर्थता द्वैतवादी दार्शनिकों ने चेतन और अचेतन-दोनों के स्वतंत्र अस्तित्व को स्वीकार किया। उन्होंने केवल आत्मा की खोज नहीं की, पदार्थ की भी खोज की, चेतन और अचेतन-दोनों के सम्बन्ध की भी खोज की। इसलिए पूर्ण सत्य को समझाने वाली हमारी भाषा होगी-जहां हम अध्यात्म-विज्ञान का प्रयोग करते हैं, वहां भौतिक-विज्ञान उसी की पृष्ठभूमि में छिपा हुआ है और जहां हम भौतिक-विज्ञान का प्रयोग करते हैं, वहां अध्यात्म-विज्ञान उसकी पृष्ठभूमि में छिपा हुआ है। दोनों को एक साथ नहीं कहा जा सकता, यह हमारी वाणी की असमर्थता है। दोनों को सर्वथा पृथक् नहीं किया जा सकता, यह अनेकान्त दृष्टि की समर्थता है। अद्वैतवादी दार्शनिकों ने भी द्वैत को सर्वथा नकारा नहीं। चेतन्याद्वैत को स्वीकार करने वाला वेदान्त भी पदार्थ को सर्वथा अस्वीकार नहीं करता। जड़ाद्वैतवादी चार्वाक् भी चेतना को सर्वथा अस्वीकार नहीं करता। शोध की परंपरा को आगे बढ़ाएं केवल अध्यात्म-विज्ञान और केवल भौतिक-विज्ञान के आधार पर जीवन की व्याख्या नहीं की जा सकती। अप्पणा सच्चमेसेज्जा-यह महामंत्र है सत्य की खोज का। दूसरों द्वारा खोजे हुए सत्यों अथवा नियमों का उपयोग करना मनीषा की परंपरा है। किन्तु स्वयं सत्य की खोज किये बिना दूसरों द्वारा खोजा हुआ सत्य हृदयंगम नहीं होता। हम दूसरों द्वारा खोजे हुए सत्य पर विराम न लगाएं। अपने द्वारा खोजा हुआ सत्य उसके साथ जोड़कर सत्य शोध की परंपरा को आगे बढ़ाएं
जीवन एक सचाई है। उसे हर मनीषी ने समझ की आंख से देखा है। फिर भी समग्रता से उसकी व्याख्या नहीं हुई। आज भी हमारे लिए शेष है कि हम जीवन की सचाई को अपनी-अपनी आंख से देखें, उसकी व्याख्या को अधिक विशद बनाएं। नवांगी जीवन जीवन के घटक तत्त्व नौ हैं१. ओज आहार-जीवन के प्रथम क्षण में होने वाली पौद्गलिक संघटना।
जीवनशैली और स्वास्थ्य / ११७
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