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जीवनशैली और स्वास्थ्य
अध्यात्म और विज्ञान के बीच भेदरेखा खींचना एकांगी दृष्टिकोण का परिणाम है। ये दोनों सत्य की खोज के दो आयाम हैं। सत्य की खोज में सबसे बड़ी बाधा है एकांगी दृष्टिकोण। महावीर ने कहा-अनेकान्त का दृष्टिकोण अपनाए बिना सत्य-शोध की दिशा में हम बहुत आगे नहीं बढ़ सकते। अनेकान्त के दो पहलू अनेकान्त के दो पहलू हैं-निश्चयनय और व्यवहारनय। अस्तित्व के खोज की पद्धति का नाम निश्चय नय है। अस्तित्व के परिवर्तनशील रूपों की खोज की पद्धति का नाम व्यवहारनय है। द्रव्य की समग्रता अस्तित्व और उसके परिवर्तनशील रूप-दोनों के समन्वय से ही जानी जा सकती है। आचारांग सूत्र का एक सूक्त है-जो एक को जानता है, वह सबको जानता है। जो सबको जानता है, वह एक को जानता है
ये एगं जाणई से सव्वं जाणई।
ये सव्वं जाणई से एगं जाणई। अध्यात्म की खोज भौतिक पदार्थ की खोज किये बिना अधूरी रहेगी। इसी प्रकार भौतिक पदार्थ की खोज अध्यात्म की खोज के बिना अधूरी रहेगी। एक भौतिकविज्ञानी को यदि एक परमाणु का सर्वथा ज्ञान करना है तो वह आत्मा या चेतना को जाने बिना उसे सर्वथा नहीं जान सकता। ठीक इसी प्रकार आत्मविज्ञानी भौतिक पदार्थ को जाने बिना आत्मा को सर्वथा नहीं जान सकता।
११६ / विचार को बदलना सीखें
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