________________
क्या है ? उसने बताया- 'हम दोनों सगे भाई हैं। मैं एक ऋषि के आश्रम में पला-बढ़ा, वहां के संस्कार सीखे। मेरा भाई चोरों के पास रहा, उसने उन्हीं के संस्कार और भाषा सीखी।' ।
जीवन की नींव ही संस्कारों पर आधारित होती है। जैन जीवनशैली में कुछ संस्कार निर्धारित किये गये हैं, जैसे-अभिवादन में जयजिनेन्द्र का प्रयोग। इस अभिवादन में 'वीतराग की जय' की भावना परिलक्षित होती है। घर की साज-सज्जा और वातावरण हमें निरंतर इस बात की प्रेरणा देने वाला होना चाहिए कि हमें वीतरागता की दिशा में प्रस्थित होना है। वीतरागता हमारा लक्ष्य है। कुल मिलाकर हमारे संस्कार वीतरागोन्मुखी होने चाहिए। संस्कारों की फिसलन बहुत है, राग की ओर ले जाने वाले घटक बहुत हैं, किन्तु वीतरागता की ओर जाने की प्रवृत्ति बने तो हमारी जीवनशैली अधिक प्रभावी बनेगी।
शाकाहार जीवनशैली का आठवां सूत्र है-आहारशुद्धि और व्यसनमुक्ति। आहार अध्यात्म का पुराना विषय भी है और नया विषय भी। पुराना इसलिए कि धर्मशास्त्रों में आहारशुद्धि पर बहुत बल दिया गया है। नया इस अर्थ में कि आज विज्ञान आहार के संबंध में बहुत सारी नयी बातें हमारे सामने प्रस्तुत कर रहा है।
हमारे आहार से आचार, विचार और व्यवहार का बहुत निकट का संबंध है, इसलिए आहार पर ध्यान देना बहत आवश्यक है। ऐसा आहार न हो, जो उत्तेजना बढ़ाए, संस्कारों में विकृति लाये। मांस वर्जनीय इसीलिए है कि पशु के संस्कार मांस के साथ आदमी में आते हैं। जिसका मांस खाया जाता है, उसके संस्कार उसमें संचित रहते हैं। फिर पशु का मांस खाने वाला पाशविक संस्कारों से कैसे बच सकता है ? उसमें पशुता जागृत हो जाने की बहुत संभावना है। हमारे मस्तिष्क में पशु के मस्तिष्क की भी एक परत है। मांस खाते रहने से वह सक्रिय हो जाती है और मांस खाने को प्रेरित करती रहती है। स्वास्थ्य के लिए भी शाकाहार ही सबसे ज्यादा अनुकूल माना गया है। आहारशुद्धि पर ध्यान देने वाला सबसे पहले इस बात पर ध्यान केन्द्रित करेगा कि आहार इतना शुद्ध हो कि
जीवनशैली के नौ सूत्र / ११३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org