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________________ उसमें विकृति पैदा करने वाले तत्त्वों का समावेश न हो। आहार और व्यसन व्यसनमुक्ति और आहार का भी गहरा संबंध है, क्योंकि आहार भी आदमी को व्यसन की ओर ले जाने वाला होता है। आहार शुद्ध होता है तो व्यसनों से मुक्त होना सरल बन जाता है। जुआ खेलना, शराब पीना, चोरी करना-ये सारे व्यसन हैं और इन्हें प्रेरणा मिलती है आहार की अशुद्धि से। पुरानी कथा है-एक मनि को एक दिन विकृत आहार मिल गया। परिणामस्वरूप उसने एक सेठ के घर से हार चुरा लिया। जंगल में जाने के बाद उसे वमन हुई, सारा भोजन निकल गया। वमन होते ही चेतना लौटी, अपने कृत्य का भान हुआ। उसने सेठ को हार वापस दे दिया। आहार विकृति के कितने बुरे परिणाम होते हैं, इसका पता हमें तब चलेगा, जब अपने शरीर और मन पर सूक्ष्मता से ध्यान देंगे। व्यापक दायरा है साधार्मिक वात्सल्य का जीवनशैली का नौवां सूत्र है-साधर्मिक वात्सल्य। अपने समान धर्म वाले व्यक्ति के प्रति वात्सल्य हो, बंधुत्व की भावना हो। कहा गया- 'जो णमुक्कारधारओ, सो मे परम बंधवो।' जो नमस्कार महामंत्र का जप करने वाला है, वह मेरा परम बंधु है। इसका यह तात्पर्य नहीं है कि दूसरा कोई हमारा बंधु नहीं है। किन्तु समानधर्मी व्यक्ति के लिए जो भावना होती है, उसे आगे बढ़ाने के लिए जो एक लक्ष्य बनता है, वह बहुत काम का है। दूसरे के प्रति अवज्ञा और उपेक्षा की बात नहीं है, किन्तु समानधर्मिता की जो स्फुरणा है, उसके प्रति वत्सलता का भाव, उसे आगे बढ़ाने का भाव, उसे सहारा देने का भाव, धर्म में स्थिरीकरण में सहयोग, उसके साथ आत्मीयता की एक अनुभूति-आदि-आदि बातें साधर्मिक वात्सल्य के अन्तर्गत आती हैं। पूज्य गुरुदेव ने कर्मणा जैन बनाने की प्रेरणा दी। उसके मूल में यह साधर्मिक वात्सल्य की ही भावना निहित है। कर्म से भी जो जैन है, वह भी मेरा अपना भाई है। इस तरह एक बहुत व्यापक दायरा बनता है साधर्मिक वात्सल्य का। हम इस सूत्र पर भी विचार करें-किस प्रकार हमारी साधर्मिकता पुष्ट हो सकती है ? हम कैसे एक-दूसरे के ११४ / विचार को बदलना सीखें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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