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________________ आजीविका सम्यक् बने जीवनशैली का छठां सूत्र है - सम्यक् आजीविका । जीविका एक सामाजिक प्राणी के लिए आवश्यक है । जीवन निर्वाह के लिए आदमी कोई न कोई धंधा, व्यवसाय, व्यापार करेगा । किन्तु जरूरी है कि आजीविका असम्यक् न हो। इस पर ध्यान देना उतना ही आवश्यक है, जितना आजीविका पर । मांस का व्यापार, अंडों का व्यापार, मदिरा का व्यापार ऐसे व्यापार हैं, जो आजीविका को सम्यक् नहीं रहने देते । जैन जीवनशैली को समझने वाला व्यक्ति इन व्यवसायों से हमेशा अपने आपको बचाना चाहेगा। ऐसे व्यवसाय, जिनसे समाज में अपराध बढ़ते हैं, क्रूरता बढ़ती है, लूट-खसोट बढ़ती है, सम्यक् आजीविका के साधन नहीं बनते। इसलिए आजीविका के प्रश्न पर विचार करना जरूरी है । सम्यक् आजीविका का सबसे बड़ा शत्रु है - तस्करी । शस्त्रों का व्यापार आज शायद हिंसा और आतंक को बढ़ाने में सबसे बड़ा हेतु बन रहा है । यदि शस्त्रों की खुली छूट न हो, इनकी बिक्री पर प्रतिबंध हो तो अपने आप ही आतंक कम होता है । सरेआम शस्त्रों का प्रदर्शन होते देख आम आदमी के मन में भी इनके प्रति आकर्षण जागता है और चाहे अनचाहे वह हिंसा की दिशा में अग्रसर होता है । विकसित राष्ट्रों में वहां के स्कूलों में विद्यार्थी शस्त्रों से लैस होकर कक्षाओं में जाते हैं। जहां ऐसी मानसिकता और ऐसी स्थिति है, वहां अहिंसा की बात कैसे स्थापित हो सकती है ? जहां सामान्य वाद-विवाद में भी गोली और बम का इस्तेमाल होने लग गया हो, वहां अहिंसा की बात ही बेमानी हो जाती है । इस स्थिति में सम्यक् आजीविका का सूत्र बहुत आवश्यक है । जीवन की नींव है संस्कार 1 जीवनशैली का सातवां सूत्र है - संस्कार । आदमी संस्कारों के आधार पर जीवन जीता है । जैसा संस्कार, वैसा व्यवहार | प्रारंभ से ही अच्छे संस्कार मिलते हैं तो जीवन अच्छा बनता है । एक तोते को अच्छा संस्कार मिला था इसलिए उसने राजा का स्वागत किया। दूसरे तोते को बुरे संस्कार मिले थे इसलिए राजा को देखते ही वह बोला पड़ा - 'आओ, मारो, काटो, लूटो ।' राजा ने पहले तोते से पूछा- दोनों के स्वभाव में इतनी भिन्नता का कारण ११२ / विचार को बदलना सीखें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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