________________
आदमी को रुकना होगा। कितना चलेगा वह ? सम्राट ने प्रसन्न होकर कहा-'जितनी दूर चल सको, उतनी भूमि तुम्हें मिल जायेगी।' वह दिन भर बेतहासा भागता रहा। जब शाम को रुका तो फिर खड़ा नहीं रह सका, गिर पड़ा और मर गया।
इच्छा की अति मृत्यु की जीवनशैली है। इच्छा पर अंकुश लगाना, उसका परिमाण करना, वैयक्तिक स्वास्थ्य का लक्षण है, सामाजिक स्वास्थ्य का लक्षण है। इच्छा के परिमाण का तात्पर्य यह नहीं है कि गृहस्थ भिखारी बन जाये, रोटी मांगकर खाये। यह एक गृहस्थ आदमी के लिए शोभा नहीं देता। इच्छा के अनुसार वह अपना जीवनयापन करता है, किन्तु इतनी इच्छा न हो कि वह सबको निगलना चाहे और सारी संपदा को अपने पास ही देखना चाहे।
समाधान है विसर्जन इच्छा की एक अति का समाधान है-विसर्जन । पूज्य गुरुदेव ने केरल की यात्रा में विसर्जन का सूत्र दिया था। यह एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है गृहस्थ के लिए, सामाजिक प्राणी के लिए। संग्रह और परिग्रह से उपजी विसंगतियों को मिटाने के लिए एक जीवन्त सूत्र है-विसर्जन। अर्जन के साथ विसर्जन भी हो। ऐसा होता है तो फिर इच्छा पर अंकुश लग जायेगा।
समाज को बनाता और बिगाड़ता है आर्थिक ढांचा। अर्थशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों और राजनेताओं ने इस सचाई को अनेक बार प्रतिपादित किया है-अर्थ के आधार पर समाज बनता और बिगड़ता है। एक बहुत बड़ी सचाई है इस बात में। आज तो यह देखकर आश्चर्य होता है कि समाजवाद और साम्यवाद की बात करने वाले भी इच्छा परिमाण की बात को स्वीकार नहीं कर रहे हैं, व्यक्तिगत स्वामित्व को सीमित नहीं किया जा रहा है। जहां व्यक्तिगत स्वामित्व असीम होगा, इच्छा अनंत होगी, उस पर कोई नियंत्रण नहीं होगा, वहां समाज कभी स्वस्थ नहीं रहेगा। इस संदर्भ में आध्यात्मिक दृष्टि से, सामाजिक और व्यावहारिक दृष्टि से इच्छा के परिमाण का सूत्र बहुत महत्त्वपूर्ण है।
जीवनशैली के नौ सूत्र / १११
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org