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________________ श्रमपरांगमुख जीवन बन गया है आज के आदमी का। एक आदमी सेठ के घर गया। बोला-'सेठ साहब, बर्तन चाहिए।' 'क्यों ? 'कल शादी है।' सेठ ने इधर-उधर देखकर उत्तर दिया-'अभी नहीं। अभी यहां कोई आदमी नहीं है।' कुछ देर बाद वह आदमी फिर लौटकर आया। बोला- 'सेठ साहब, बहुत जरूरी है। बर्तन देने की कृपा करें।' सेठ ने फिर इधर-उधर देखकर वही उत्तर दिया-'अभी कोई आदमी नहीं है।' उस आदमी से रहा नहीं गया। तत्काल बोल उठा-'मैं तो आपको आदमी समझकर ही आया था। तब कितनी दयनीय दशा बन जाती है, जब आदमी अपने आपको आदमी न माने और अपने कर्मचारी को आदमी माने। समण संस्कृति ने श्रम का सूत्र देते हुए कहा-'स्वयं पुरुषार्थ करो, अपने भरोसे पर जीने की आदत डालो।' समानता, उपशम और स्वावलंबन-इन तीन सूत्रों को एक शब्द में कहा गया-हमारी जीवनशैली समण संस्कृति की जीवनशैली बने, वह विषमता की जीवनशैली न बने, आवेश और उत्तेजना की जीवनशैली न बने, परावलंबन और निठल्लेपन की जीवनशैली न बने। इच्छा की अति अनेकान्त, अहिंसा और समण संस्कृति-इन तीनों को मिलाकर जो जीवनशैली का सूत्र बनता है, नवनीत के रूप में, निचोड़ के रूप में हमारे सामने आता है-वह है इच्छा परिमाण । यह जीवनशैली का पांचवां सूत्र है। विषमता पैदा करती है इच्छा की अति, श्रम परांगमुखता पैदा करती है इच्छा की अति और उत्तेजना पैदा करती है इच्छा की अति। वह हिंसा को जन्म देती है और अनेकान्त की जीवनशैली को विकसित नहीं होने देती। इस अति इच्छा ने जीवन को बहुत असंतुलित कर दिया है। इच्छा परिमाण जीवनशैली का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है। हम इच्छा का परिमाण करें। आखिर कहीं तो ११० / विचार को बदलना सीखें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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